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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मूषक-विष-चिकित्सा। २७५ जो लक्षण देखनेमें आते हैं, वे वातरक्त या उपदंश आदिके लक्षणोंसे मिल जाते हैं, अतः हर तरह धोखा होता है और मनुष्य धीरे-धीरे अनेक रोगोंका शिकार होकर मौत के मुंहमें चला जाता है। धोखा होनेके कारण । चूहोंका विष और ज़हरीले जानवरोंकी तरह केवल दाढ़-दाँतों या नख वगैरः किसी एक ही अंगमें नहीं होता। चूहोंका विष पाँच जगह रहता हैः-- (१) वीर्यमें। (२) पेशाबमें। (३) पाखानेमें। (४) नाखूनोंमें। (५) दाढ़ोंमें। यद्यपि मूषक-विषके रहनेके पाँच स्थान हैं, पर प्रधान विष चूहोंके पेशाब और वीर्यमें ही होता है। हर घरमें कमोबेश चूहे रहते हैं। वे घरके कपड़े-लत्तों, खाने-पीनेके पदार्थों, बर्तनों तथा अन्यान्य चीजोंमें बेखटके घूमते, बैठते, रहते और मौज करते हैं । जब उन्हें पाखानेपेशाबकी हाजत होती है, उन्हीं सबमें पेशाब कर देते हैं। वहीं पाखाना फिर देते और वहीं अपना वीर्य भी त्याग देते हैं। इसके सिवा, ज़मीनपर मल-मूत्र और वीर्य डालनेमें तो उन्हें कभी रुकावट होती ही नहीं। इनके मल-मूत्र प्रभृतिसे खराब हुए कपड़ोंको प्रायः सभी लोग पहनत, ओढ़ते और बिछाते हैं, अथवा इनके मल-मूत्र आदिसे खराब हुई जमीनपर अपने कपड़े रखते, बिछाते और सोते हैं। चूहोंका मल-मूत्र या वीर्य कपड़ों प्रभृतिसे मनुष्य-शरीरमें घुस जाता है; यानी उनका और शरीरका स्पर्श होते ही विषका असर शरीरमें हो जाता है । मजा यह कि, उनका जहर इस तरह शरीरमें घुस जाता और अपना काम करने लगता है, पर मनुष्यको कुछ भी मालूम नहीं होता। लेकिन जब वह-काल और कारण मिल जानेसे--कुपित होता है, तब उसके विकार मालूम होते हैं । पर For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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