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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir । चिकित्सा-चन्द्रोदय । (४१) बिच्छूके काटते ही, तत्काल, बिच्छूके काटे स्थानपर, तिलीके तेलके तरड़े दो अथवा सेंधानोन मिले हुए घीके तरड़े दो। इन दोनोंमेंसे किसी एक उपायके करनेसे बिच्छूका जहर अवश्य उतर जाता है । परीक्षित है। ___ नोट--इन उपायोंके साथ अगर कोई खाने और आँजने की दवा भी सेवन की जाय, तो और भी जल्दी पाराम हो । (४२) काँजीमें जवाखार और नमक पीसकर मिला दो और फिर उसे गरम करो। बारम्बार इस दवाको सींचने या इसका तरड़ा देनेसे बिच्छूका जहर उतर जाता है । परीक्षित है। (४३) जीरेको पानीके साथ सिलपर पीस लो । फिर उस लुगदीमें घी और पिसा हुआ सेंधानोन मिला दो। इसके बाद उसे आगपर गरम करो और थोड़ा-सा शहद मिला दो। इस दवाका लेप काटी हुई जगहपर करनेसे बिच्छूका विष अवश्य नष्ट हो जाता है। कई बार परीक्षा की है । कभी यह लेप फेल नहीं हुआ। इस लेपको सुहाता-सुहाता गरम लगाना चाहिये । परीक्षित है। (४४) मैनसिल, सेंधानोन, हींग, चमेलीके पत्ते और सोंठइन सबको एकत्र महीन पीसकर छान लो। फिर इस चूर्णको खरलमें डाल, ऊपरसे गायके गोबरका रस दे-देकर घोटो और गोलियाँ बना लो। इन गोलियोंको पानीमें घिसकर लगानेसे बिच्छूका जहर फौरन उतर जाता है। - (४५) पीपर और सिरसके बीज बराबर-बराबर लेकर, पानीके साथ पीसकर, काटी हुई जगहपर लेप करो। कई बार लेप करनेसे बिच्छूका विष अवश्य नष्ट हो जाता है। नोट-अगर सिरसके बीज और पीपलके चूर्णमें "प्राकके दूध"की तीन भावनाएँ भी दे दी जायँ,तो यह दवा और भी बलवान हो जाय । वाग्भट्टमें लिखा है अर्कस्य दुग्धेन शिरीषवीजं त्रिर्भावितं पिप्पलिचूर्णमिश्रम् । एषोगदो हन्ति विषाणि कीटभुजंगलूतोन्दुरुवृश्चिकानाम् ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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