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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir maar २६२ चिकित्सा-चन्द्रोदय । - नोट--ऊपरकी बातका यह मतलब है, कि रोगी २०, १६, १८, १७, १६, १५, १४, १३, १२, ११, १०, ६, ८, ७, ६, ५, ४, ३, २ और १ इस तरह गिने; यानी बीससे एक तक उल्टी गिन्ती गिने । .. (११) भाँगके बीज कूट-पीसकर और मोममें मिलाकर खिलानेसे बिच्छूका जहर उतर जाता है। (१२) 'मोजिज़" नामक ग्रन्थमें लिखा है- एक मनुष्यको बिच्छूने चालीस जगह काटा । उसने चटपट "इन्द्रायणका हरा फल" लाकर, उसमेंसे आठ माशे गूदा खा लिया। खाते देर हुई, पर आराम होते देर न हुई। - (१३) बिच्छूके काटे स्थानपर प्याजका जीरा मलने और थोड़ासा गुड़ खा लेनेसे बिच्छूका विष उतर जाता है। परीक्षित है। (१४) घीमें कुछ सैंधानोन मिलाकर पीनेसे बिच्छूका ज़हर उतर जाता है । परीक्षित है। विच्छूके काटे स्थानपर लगाने, सूघने, आँजने और __ धूनी देनेकी दवाएँ । (१५) किसी कदर गरम कॉजी बिच्छूके काटे स्थानपर सींचने या तरड़ा देनेसे ज़हर उतर जाता है । (१६) शालिपर्णीका मन्दोष्ण या सुहाता-सुहाता गरम काढ़ा बिच्छूके काटे स्थानपर सींचनेसे जहर उतर जाता है। नोट--शालिपर्णीको हिन्दीमें “सरिवन", बँगलामें शालपानि, मरहठीमें सालवण और गुजरातीमें समेरवो कहते हैं । इसमें विष नाश करनेकी शक्ति है । (१७) गरमागर्म घीमें सेंधानोन पीसकर मिला दो और फिर उसे बिच्छूके काटे हुए स्थानपर सींचो । इसके साथ ही घीमें सेंधानोन मिलाकर, दो-तीन बार पीओ। यह उपाय परीक्षित है। (१८) दूधमें सेंधानोन पीसकर मिला दो और फिर उसे आगपर For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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