SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 284
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बिच्छू-सम्बन्धी जानने-योग्य बातें। काला खून निकलने लगता है, जिससे शीघ्र ही मृत्यु हो जाती है । यही लक्षण “सुश्रुत' में लिखे हैं। "तिब्बे अकबरी'में लिखा है, एक तरहका बिच्छू और होता है, उसे “जरारा" कहते हैं । जिस समय वह चलता है, उसकी पूँछ धरतीपर घिसटती चलती है। उसका जहर गरम होता है; लेकिन दूसरे या तीसरे दिन दर्द बढ़ जाता है, जीभ सूज जाती है, पेशाबकी जगह खून आता है, बड़ी पीड़ा होती है, आदमी बेहोश या पागल हो जाता है तथा पीलिया और अजीर्णके चिह्न देखने में आते हैं । उसके काटनेसे बहुधा मनुष्य मर भी जाते हैं। ___ “तिब्बे अकबरी"में “जरारा" बिच्छूका इलाज अन्य बिच्छुओंके इलाजसे अलग लिखा है। उसमें की कई बातें ध्यानमें रखने योग्य हैं। हम उसके सम्बन्धमें आगे लिखेंगे। “वैद्यकल्पतरु में लिखा है, अगर बिच्छू काटता है, तो सुई चुभानेका-सा दर्द होता है, लेकिन थोड़ी देर बाद दर्द बढ़ जाता है। फिर ऐसा जान पड़ता है; मानो बहुत-सी सुइयाँ चुभ रही हों । बीके डंकका दर्द सर्पके डंकसे भी असह्य होता है और पाँच या दस मिनट में ही चढ़ जाता है। बीके काटनेसे मरनेका भय कम रहता है; परन्तु पीड़ा बहुत होती है। अगर बीळू बहुत ही जहरीला होता है, तो काटे जानेवालेका शरीर शीतल हो जाता है और पसीने खूब आते हैं। ऐसे समयमें शरीरमें गरमी लानेवाली गरम दवाएँ अथवा चाय या काफी पिलाना हित है। नोट-बिच्छूके काटनेपर भी, साँपके काटने पर जिस तरह बन्ध बाँधे जाते हैं, दंश-स्थान जलाया या काटा जाता है, ज़हर चूसा जाता है; उसीतरह वही सब उपाय करने चाहिए। काष्टिक या कारबोलिक ऐसिडसे अगर बिच्छूका काटा स्थान जला दिया जाय, तो ज़हर नहीं चढ़ता । काटे हुए स्थानपर प्याज़ काटकर बाँधना भी अच्छा है । ऐमोनिया लगाना और सुँघाना बहुत ही उत्तम है। प्याज़ और ऐमोनियाके इस्तेमालसे बिच्छूके काटे तो आराम होते ही हैं, इसमें शक नहीं; अनेक साँपोंके काटे हुए भी साफ बच गये हैं।... For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy