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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५२ - चिकित्सा-चन्द्रोदय । अगर मध्यम विषवाला बिच्छू काटता है, तो शरीरमें दर्द, कम्प, अकड़न, काला खून निकलना, जलन होना, सूजन चढ़ना और पसीने आना प्रभृति लक्षण तो होते ही हैं। इनके सिवा जीभ सूज जाती है, खाया-पिया पदार्थ गलेसे नीचे नहीं जाता और काटा हुआ आदमी बेहोश हो जाता है। अगर महा विषवाला बिच्छू काटता है, तो जीभ सूज जाती है, अङ्ग स्तब्ध हो जाते हैं, ज्वर चढ़ आता है और मुँह, नाक, कान श्रादि छिद्रोंसे काला-काला खून निकलता है, इन्द्रियाँ बेकाम हो जाती हैं, पसीने आते हैं, होश नहीं रहता, मुँह रूखा हो जाता है, दर्दका ज़ोर खूब रहता है और मांस फटा हुआ-सा हो जाता है । ऐसा आदमी मर जाता है। ___ बङ्गसेनने लिखा है, बिच्छूका विष आगके समान दाह करता या जलता है। फिर जल्दीसे ऊपरकी ओर चढ़कर, अङ्गोंमें भेदने या तोड़नेकी व्यथा--पीड़ा करता है और फिर काटनेके स्थानमें आकर स्थिर हो जाता है। ... बङ्गसेनने ही लिखा है, बिच्छू जिस मनुष्य के हृदय, नाक और जीभमें डङ्क मारता है, उसका मांस गल-गलकर गिरने लगता और. घोर वेदना या पीड़ा होती है। ऐसा रोगी असाध्य होता है, यानी नहीं बचता। ... "तिब्बे अकबरी' में लिखा है, बीके काटनेकी जगहपर सूजन, लाली, कठोरता और घोर पीड़ा होती है। अगर डक रगपर लगता है, तो बेहोशी होती है और यदि पट्टे पर लगता है तो गरमी मालूम होती और सिरमें दर्द होता है। - एक हकीमी ग्रन्थमें लिखा है, कि उग्र विषवाले या महा विषवाले बिच्छूके काटनेसे सर्पके-से वेग होते हैं, शरीरपर फफोले पड़ जाते हैं, दाह, भ्रम और ज्वर होते हैं तथा मुँह और नाक आदिसे For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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