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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४५ सर्प-विषकी सामान्य चिकित्सा । नोट-सिरसके पत्त लाकर सिलपर पीस लो और कपड़ेमें निचोड़कर स्वरस निकाल लो। फिर इस रसमें सहजनके बीजोंको भिगो दो और सुखा लो। इस तरह सात दिन तक नित्य ताज़ा सिरसके पत्तोंका रस निकाल-निकालकर बीजोंको भिगोश्रो और सुखाओ। पाठवें दिन उठाकर शीशी में रख लो। इस दवाको पीसकर नाकमें सुंघाने या फुकनीसे चढ़ाने, आँखोंमें आँजने और इसीको पानीमें घोलकर पिलानेसे साँपका ज़हर निश्चय ही नष्ट हो जाता है। वैद्यों और गृहस्थोंको यह दवा घरमें तैयार रखनी चाहिये, क्योंकि समयपर यह बन नहीं सकती। ... (७४) करंजुवेके फल, सोंठ, मिर्च, पीपर, बेलकी जड़, हल्दी, दारुहल्दी और सुरसाके फूल, इन सबको बकरीके मूत्रमें पीसकर आँखोंमें आँजनेसे, सर्प-विषसे बेहोश हुआ मनुष्य होशमें श्रा जाता है। वृन्द। . (७५ ) आकके पत्तेमें जो सफ़ेदी-सी होती है, उसे नाखूनोंसे खुर्च-खुर्चकर एक जगह जमा कर लो। फिर उसमें आकके पत्तोंका दूध मिलाकर घोट लो और चने समान गोलियाँ बना लो। साँपके काटे हुएको, बीस-बीस या तीस-तीस मिनटपर, एक-एक गोली खिलाओ। छै गोली खाने तक रोगीका मुंह मीठा मालूम होगा, पर सातवीं गोली कड़वी मालूम होगी। जब गोली कड़वी लगे, आप समझ लें कि जहर नष्ट हो गया, तब और गोली न दें। परीक्षित है। (७६.) फिटकरी पीसकर और पानीमें घोलकर पिलानेसे भी साँपके काटेको बड़ा लाभ होता है । For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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