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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Sona...८०००००००००००००००० 000000 ००००००००००००००००००००००० 000000 0000000000000000000000000, ०००००००० 2200०६०० . 5 900coacco००००० Foto06००००००००००० सर्प-विष चिकित्सा। . ०० ० . acc0000000000..००% 00000000000038 100000.0000 20000000 ....00 ०...00CEDGoBoo. . ०० . onao. 300800 POTO. 0.00 3000 ..००Pon. . .. ..... वेगानुरूप चिकित्सा । (१) किसी तरहका साँप काटे, पहले वेगमें खून निकालना ही सबसे उत्तम उपाय है, क्योंकि खूनके साथ जहर निकल जाता है । (२) दूसरे वेगमें - शहद और घीके साथ अगद पिलानी चाहिये अथवा घी-दूधमें कुछ शहद और विषनाशक दवाएँ मिलाकर पिलानी चाहियें। (३) तीसरे वेगमें- अगर दर्बीकर या फनवाले सर्पने काटा हो, तो विष-नाशक नस्य और अञ्जन ( घाने और नेत्रोंमें लगाने चाहिये। (४) चौथे वेगमें - वमन कराकर, पीछे लिखी विषघ्न यवागू पिलानी चाहिये। (५-६ ) पाँचवे और छठे वेगमें शीतल उपचार करके, तीक्ष्ण विरेचन या कड़ा जुलाब देना चाहिये। अगर ऐसा ही मौका हो, तो पिचकारी द्वारा भी दस्त करा सकते हो। जुलाबके बाद, अगर उचित जंचे, तो वही यवागू देनी चाहिये । ___ (७) सातवें वेगमें - तेज़ अवपीड़न नस्य देकर सिर साफ करना चाहिये । साथ ही तेज़ विष-नाशक अंजन आँखोंमें लगाना चाहिये और तेज़ नस्तरसे मूर्द्धा या मस्तकमें कव्वेके पंजे के आकारका * काकपद करना--सातवें वेगमें मूर्द्धा या मस्तकके ऊपर, तेज़ नश्तरसे. खुरच-खुरचकर, कव्वेका पञ्जा-सा बनाते हैं। उसमें मांसको इस तरह छोलते हैं कि, खून नहीं निकलता और मांस छिल जाता है। फिर उस काकपद या कव्वेके पंजेके निशानपर, खूनसे तर चमड़ा या किसी जानवरका ताज़ा मांस रखते हैं। यह मांस सिरमेंसे विषको खींच लेता है। For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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