SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 246
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सर्प-विषसे बचानेवाले उपाय । (१०) साँपकी राहमें अगर राई डाल दी जाय, तो साँप उस राहसे नहीं निकलता । राई और नौसादर साँपके बिल या बाँबीमें डाल देनेसे साँप उन्हें छोड़ भागता है। ____ नोट-निराहार रहनेवाले मनुष्यका थूक अगर साँपके मुंहमें डाल दिया जाय, तो सौप मर जायगा । अगर उस आदमीके मुंहमें नौसादर हो, तो उसके थूकसे साँप और भी जल्दो मर जायगा । राई भी सर्पको मार डालती है । (११) वृन्द वैद्यने लिखा है:-आषाढ़ के महीने के शुभ दिन और शुभ मुहूर्तमें, सिरसकी जड़को चाँवलोंके पानीके साथ पीनेवालेको सर्पका भय कहाँ ? अर्थात् साँपका डर नहीं रहता। यदि ऐसे आदमीको कोई साँप दर्प या मोहसे काट भी खाता है, तो उसी समय उसका विष, शिवजीकी आज्ञानुसार, सिरसे मूल स्थानपर जा पहुँचता है; अतः जिसे वह काटता है, उसकी कोई हानि नहीं होती । चक्रदत्त लिखते हैं, कि वह सर्प उसी स्थानपर मर जाता है। लिखा है: मूलं तण्डुलवारिणा पिबति यः प्रत्यंगिरासंभवम् ।। उद्धृत्याऽऽकलितं सुयोगदिवसे तस्याऽहिभीतिः कुतः ? . नोट--सिरसकी जड़को भाषाढ़ मासके शुभ दिन और शुभ मुहूर्त में ही उखाड़कर लाना चाहिये, पहलेसे लाकर रखी हुई जड़ कामकी नहीं । हाँ, चक्रदत्तने लिखा है कि, इस जड़को बिना पीसे चाँवलोंके पानीके साथ पीना चाहिये । (१२) मसूर और नीमके पत्तोंके साथ “सिरसकी जड़"को पीसकर, वैशाखके महीने में पीनेवालेको, एक वर्ष तक विष और विषमज्वरका भय नहीं रहता। चक्रदत्तने लिखा है: मसूरं निम्बपत्राभ्यां खादेन्मेषगते रखौं । अब्दमेकं न भीतिः स्यद्विषार्तस्य न संशयः ॥ मसूरको नीमके पत्तों के साथ जो आदमी मेषके सूर्यमें खाता है, उसे एक साल तक साँपोंसे भय नहीं होता, इसमें संशय नहीं। For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy