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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सर्प-विष-चिकित्सामें याद रखने योग्य बातें। २०१ स्थावर-संखिया और अफीम प्रभृतिके विषमें तथा जंगमसाँप-बिच्छू प्रभृति चलनेवालोंके विषमें, वमन सबसे अच्छा जान बचानेवाला उपाय है । वमन करा देनेसे दोनों तरहके विष नष्ट हो जाते हैं। स्थावर विष खाये जानेपर तो वमन ही मुख्य और सबसे पहला उपाय है। जंगम विषमें यानी साँप आदिके काटनेपर, जरा ठहरकर वमन करानी पड़ती है और कभी-कभी तत्काल भी करानी पड़ती है, क्योंकि बाजे साँप के काटते ही जहर बिजलीकी तरह दौड़ता है। अनेक साँपोंके काटनेसे, आदमी काटनेके साथ ही गिर पड़ता और खतम हो जाता है। ये सब बातें चिकित्सककी बुद्धिपर निर्भर हैं। बुद्धिमान मनुष्य ज़रा-सा इशारा पाकर ही ठीक काम कर लेता है और मूढ़ आदमी खोल-खोलकर समझानेसे भी कुछ नहीं कर सकता । बहुतसे अनाड़ी कहा करते हैं, कि संखिया या अफीम आदि विष खा लेनेपर तो वमन कराना उचित है, पर सर्प-विच्छू प्रभृतिके काटनेपर वमनकी ज़रूरत नहीं। ऐसे अज्ञानियोंको समझना चाहिये, कि वमन करानेकी दोनों प्रकारके विषों में ही ज़रूरत है। (१४) अगर किसी वजहसे वमन कराने में देर हो जाय और विष पक्काशयमें पहुँच जाय, तो फौरन ही तेज़ जुलाब देकर, जहरको, पाखानेकी राहसे, पक्काशयसे निकाल देना चाहिये । जब ज़हर आमाशयमें रहता है, तब जी मिचलाने लगता है; किन्तु जहर जब पक्काशयमें पहुँचता है, तब रोगीके कोठेमें दाह या जलन होती है, पेटपर अफारा आ जाता है, पेट फूल जाता और मल-मूत्र बन्द हो जाते हैं । विषके पक्काशयमें पहुंचे बिना, ये लक्षण नहीं होते, अतः ये लक्षण देखते ही, जुलाब देना चाहिये। ___(१५) जिस साँपके काटे हुए आदमीके सिरमें दर्द हो, आलस्य हो, मन्यास्तम्भ हो- गर्दन रह गई हो और गला रुक गया हो, उसे शिरोविरेचन या सिरका जुलाब देकर, सिरकी मलामत निकाल २६ For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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