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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०० चिकित्सा-चन्द्रोदय । "जिसके शरीरका रंग और-का-और हो गया हो, जिसके अङ्गोंमें दर्द या वेदना हो और खूब ही कड़ी सूजन हो, उस साँपके काटेका खून शीघ्र ही निकाल देना सबसे अच्छा इलाज है।" ठीक यही बात, दूसरे शब्दोंमें, वाग्भट्टने भी कही है-- __ "विषके फैल जानेपर शिरा बींधना या फस्द खोलना ही परमोत्तम क्रिया है, क्योंकि निकलते हुए खूनके साथ विष भी निकल जाता है।" शिरा या नस न दीखेगी, तो फस्द किस तरह खोली जायगी, इसीसे ऐसे मौकेपर सींगी लगाकर या जौंक लगाकर खून निकाल देनेकी आज्ञा दी गई है, क्योंकि खूनको किसी तरह भी निकालना परमावश्यक है। गर्भवती, बालक और बूढ़ेको अगर सर्प काटे, तो उनकी शिरा न बेधनी चाहिये-उनकी फस्द न खोलनी चाहिये। उनके लिए मृदु चिकित्साकी आज्ञा है। (१३) अगर पहले कहे हुए शिराबेधन या दाह आदि कर्मोंसे जहर जहाँ-का-तहाँ ही न रुके, खूनके साथ मिललर, आमाशयमें पहुँच जाय-नाभि और स्तनोंके बीचकी थैलीमें पहुँच जाय, तो आप फ़ौरन ही वमन कराकर विषको निकाल देनेकी चेष्टा करें। क्योंकि जब विष आमाशयमें पहुँचेगा, तो रोगीको अत्यन्त गौरव, उत्क्लेश या हुल्लास होगा; यानी जी मचलावे और घबरावेगाक्रय करनेकी इच्छा होगी। यही विषके आमाशयमें पहुँचनेकी पहचान है । इस समय अगर क़य कराने में देर की जायगी, तो और भी मुश्किल होगी, क्योंकि विष यहाँसे दूसरे प्राशय--पक्काशयमें पहुँच जायगा। वमन करा देनेसे विष निकल जायगा और रोगी चङ्गा हो जायगा-- विषको आगे बढ़नेका मौका ही न मिलेगा। कहा है: वमनेर्विषहद्भिश्च नेव व्याप्नोति तद्वपुः।। - वमन करा देनेसे विष निकल जाता है और सारे शरीर में नहीं फैलता। For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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