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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६२ चिकित्सा-चन्द्रोदय । तेजपात, दालचीनी, कूट और प्रियंगू-इनको आगमें जलाकर, धूआँ करनेसे धूएँ और हवाकी शुद्धि होती है। (२) चाँदीका बुरादा, पारा और बीरबहुट्टी,--इन तीनोंको समान-समान लो । फिर इन तीनोंके बराबर मोथा या हिंगलू मिलाओ । इन सबको कपिलाके पित्तमें पीसकर बाजोंपर लेप कर दो। इस लेपको लगाकर नगाड़े और ढोल आदि बजानेसे घोर विषके परिमाणु नष्ट हो जाते हैं। विष-नाशक संक्षिप्त उपाय । (१) “महासुगन्धि" नामकी अगदके पिलाने, लेप करने, नस्य देने और आँजनेसे सब तरहके विष नष्ट हो जाते हैं । “सुश्रुत में लिखा है, महासुगन्धि अगदसे वह मनुष्य भी आराम हो जाते हैं, जिनके कन्धे विषसे टूट गये हैं, नेत्र फट गये हैं और जो मृत्यु-मुखमें गिर गये हैं। इसके सेवनसे नागोंके राजा वासुकिका डसा हुआ भी आराम हो जाता है । मतलब यह है, इस अगदसे स्थावर विष और सर्प-विष निश्चय ही शान्त होते हैं । इसके बनानेकी विधि इसी भागके पृष्ठ ३०-३१ में लिखी है। (२) अगर विष आमाशयमें हो, तो खूब कय कराकर विषको निकाल दो । अगर विष पक्काशयमें हो, तो तेज जुलाबकी दवा देकर विषको निकाल दो। अगर विष खूनमें हो, तो फस्द खोलकर, सींगी लगाकर या जैसे ऊंचे खूनको निकाल दो । चक्रदत्तजी कहते हैं:--अगर विष खालमें हो, तो लेप और सेक आदि शीतल कर्म करो। नोट-(१) अगर विष प्रामाशयमें हो, तो चार तोले तगरको शहद और मिश्री में मिलाकर चाटो । (२) अगर विष पक्वाशयमें हो, तो पीपर, हल्दी, मँजीठ और दारुहल्दी--बराबर-बराबर लेकर और गायके पित्तमें पीसकर मनुष्यको पीने चाहिये। For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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