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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शत्रुओं द्वारा दिये हुए विषकी चिकित्सा । १६१ हैं होते हैं । (६) सिन्दुवारके वृक्ष वनमें बहुत होते हैं । (७) मोखा के वृत्त भी वनमें होते हैं । ( ८ ) किरमाला यानी अमलताशके पेड़ भी वनमें बड़े-बड़े होते 1 ९ ) सफ़ ेद खैरके वृक्ष भी वनमें बड़े-बड़े होते हैं । मतलब यह कि, ये नौ वृक्ष वनमें होते हैं और बहुतायत से होते हैं । इनके उपयोगी श्रङ्ग छाल आदि लेकर राख कर लेनी चाहिये । विष- दूषित पृथ्वी | विष- दूषित ज़मीन से मनुष्य या हाथी घोड़े आदिका जो अङ्ग छू जाता है, वही सूज जाता या जलने लगता है अथवा वहाँके बाल झड़ जाते या नाखून फट जाते हैं । पृथ्वी की शुद्धिका उपाय । ( १ ) जवासा और सर्वगन्धकी सब दवाओं को शराब में पीस और घोलकर, सड़कों या राहोंपर छिड़काव कर देनेसे पृथ्वी निर्विष हो जाती है । YRKK नोट --तज, तेजपात, बड़ी इलायची, नागकेशर, कपूर, शीतलचीनी, अगर, केशर और लैंग-इन सबको मिलाकर “सर्वगन्ध" कहते हैं। याद रखो, औषधि गन्ध या विषसे हुए ज्वर में, पित्त और विषके नाश करने को, इसी सर्वगन्धका काढ़ा पिलाते हैं । विष - मिली धूत्र और हवा | RRR विषैली धूआँ और विषैली हवासे आकाश के पक्षी व्याकुल होकर ज़मीनपर गिर पड़ते हैं और मनुष्योंको खाँसी, जुकाम, सिर-दर्द और दारुण नेत्र रोग होते हैं । शुद्धिका उपाय | ( १ ) लाख, हल्दी, अतीस, हरड़, नागरमोथा, हरेणु, इलायची, २१ For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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