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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५६ चिकित्सा-चन्द्रोदय । mar मुखलेपगत विष के लक्षण । अगर मुँहपर मलनेके पदार्थों में विष होता है, तो उनके मुंहपर लगानेसे मुंह स्याह हो जाता है और मुहासे-जैसे छोटे-छोटे दाने पैदा हो जाते हैं, चमड़ी पक जाती है, मांस कट जाता है, पसीने. आते हैं, ज्वर होता और फफोले-से हो जाते हैं। चिकित्सा। (१) घी और शहद-नाबराबर-पिलाओ। (२) चन्दन और घीका लेप करो। (३) अर्कपुष्पी या अन्धाहूली, मुलेठी, भारंगी, दुपहरिया और साँठी--इन सबको पीसकर लेप करो। नोट-अर्क-पुष्पी संस्कृत नाम है । हिन्दी में, अन्धाहूली, अर्कहूली, अर्कपुष्प, क्षीरवृक्ष और दधियार कहते हैं। इसमें दूध निकलता है। फूल सूरजमुखीके समान गोल होता है । पत्त गिलोयके समान छोटे होते हैं। इसकी बेल नागर बेलके समान होती है । बंगलामें इसे "बड़क्षीरई" और मरहठीमें 'पहारकुटुम्बी' कहते हैं। दुपहरियाको संस्कृतमें बन्धूक या बन्धुजीव और बँगलामें "बान्धुलि पूलेर गाछ” कहते हैं । यह दुपहरीके समय खिलता है, इस से इसे दुपहरिया कहते हैं । माजी लोग इसे बागों में लगाते हैं । *** * ** * *** * ** * ** * सवारियोंपर विषके लक्षण । ___ अगर हाथी, घोड़े, ऊँट आदिकी पीठोंपर विष लगा हुआ होता है, तो हाथी-घोड़े आदिकी तबियत खराब हो जाती है, उनके मुंहसे लार गिरती है और उनकी आँखें लाल हो जाती हैं। जो कोई ऐसी विष-लगी सवारियोंपर चढ़ता है, उसकी साथलों--जाँघों, लिङ्ग, गुदा और फोतोंमें फोड़े या फफोले हो जाते हैं। For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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