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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३० चिकित्सा-चन्द्रोदय । 16 dpx Akadak ७ ' र कुचलेका वर्णन और उसकी व शान्तिके उपाय । कुचलेके गुणावगुण प्रभृति । MEAN चलेको संस्कृतमें कारस्कर, किम्पाक, विषतिन्दु, विषद्रुम, कुरा गरद्रुम, रम्यफल और कालकूटक आदि कहते हैं। इसे ke हिन्दीमें कुचला, बँगलामें कुचिले, मरहठीमें कुचला, गुजरातीमें झेरकोचला, अंग्रेजीमें पाइज़न-नट और लैटिनमें ष्ट्रिकनाँस नक्सवोमिका कहते हैं। कुचला शीतल, कड़वा, वातकारक, नशा लानेवाला, हल्का, पाँवकी पीड़ा दूर करनेवाला, कफपित्त और रुधिर-विकार नाश करनेवाला, कण्डू, कफ, बवासीर और व्रणको दूर करनेवाला, पाण्डु और कामलाको हरनेवाला तथा कोढ़, वातरोग, मलरोध और ज्वरनाशक है। कुचलेके वृक्ष मध्यम आकारके प्रायः वनोंमें होते हैं । इसके पत्ते पानके समान और फल नारङ्गीकी तरह सुन्दर होते हैं । इन फलोंके बीजोंको ही “कुचला" कहते हैं । यह बड़ा तेज़ विष है। ज़रा भी जियादा खानेसे आदमी मर जाता है । कुचलेकी मात्रा दो-तीन चाँवल तक होती है। आजकल विलायतमें कुचलेका सत्त निकाला जाता है। उसकी मात्रा एक रत्तीका तीसवाँ भाग या चौथाई चाँवल-भर होती है। सत्त सेवन करते समय बहुत ही सावधानीकी ज़रूरत है, क्योंकि यह बहुत तेज होता है। अधिक कुचला खानेका नतीजा । इसकी ज़ियादा मात्रा खाने या बेकायदे खानेसे पेटमें मरोड़ी, ऐंठनी, गलेमें खुश्की, खराश और रुकावट होती है । तथा शरीर ऐंठता For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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