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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विष-उपविषोंकी विशेष चिकित्सा-"अफ़ीम"। ६७ लानेवाला" है । उसी ओपियानसे ओपियम, अफियून, अंफून, आफू या अफीम शब्द बन गये जान पड़ते हैं। यह मादक या नशीला 'पदार्थ है । इससे नींद भी गहरी आती है। इसकी गणना उपविषोंमें है, क्योंकि इसके अधिक परिमाणमें खानेसे मृत्यु हो जाती है। ___अफीम यद्यपि विष या उपविष है; प्राणनाशक या घातक है; फिर भी भारतवर्षके करोड़ों आदमी इसे नित्य-नियमित रूपसे खाते हैं । राजपूताने या मारवाड़ देशमें इसका प्रचार सबसे अधिक है। जिस तरह युक्त-प्रान्तमें किसी मित्र या मेहमानके आनेपर पान, तम्बाकू या शर्बतकी खातिर की जाती है, वहाँ इसी तरह अफीमकी मनुहार की जाती है। जो जाता है, उसे ही घुली हुई अफीम हथेलियोंमें डालकर दी जाती है। महफिलों और विवाह-शादी तथा लड़का होनेके समय जो घुली हुई लेता है, उसे घोलकर और जो डली पसन्द करता है, उसे डली देते हैं। खानेवाला पहले तो अपने घरपर अफीम खाता है और फिर दिन-भरमें जितनी जगह मिलने जाता है, वहाँ खाता है। मारवाड़के राजपूत या ओसवाल एवं अन्य लोग इसे खूब पसन्द करते हैं। कोई-कोई ठाकुर या राजपूत दिन-भरमें छटाँक-छटाँक भर तक खा जाते हैं और हर समय नशेमें झूमते रहते हैं । जैपुरमें एक नव्वाब साहब सवेरे-शाम पाव-पाव भर अफीम खाते थे और इसपर भी जब उन्हें नशा कम मालूम होता था, तब साँप मँगवाकर खाते थे। ऐसे-ऐसे भारी अफीमची मारवाड़ या राजपूताने में बहुत देखे जाते हैं। जहाँ देशी राजाओंका राज है, वहाँ अफीमका ठेका नहीं दिया जाता; हर शख्स अपने घरमें मनमानी अफीम रख सकता है । वहाँ अफीम खूब सस्ती होती है और यहाँकी अपेक्षा साफ-सुथरी और बेमैल मिलती है। भारतीय ठेकेदार या सरकार-भगवान् जाने कौन-भारतीय अफीममें कत्था, कोयला, मिट्टी प्रभृति मिला देते हैं । अफीम शोधनेपर दो हिस्से मैला For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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