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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ८० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्सा-चन्द्रोदय | भिलावे शोधनेको तरकीबें । भिलावेको भी शोधकर सेवन करना चाहिये । भिलावों को जल में डाल दो। जो भिलावे डूब जायें, उन्हें निकालकर उतने ही पानी में भिगो दो। फिर उनको ई टके चूर्ण या कूकुआ से खूब घिसो और उनके नीचेकी ढिपुनी काट-काटकर फेंक दो। इसके बाद उन्हें फिर जलमें धो डालो और सुखाकर काम में लाओ । यही शुद्ध भिलावे हैं । भिलावों को एक दिन-भर पानी में पकाओ। फिर उन्हें निकालकर उनके टुकड़े कर डालो और दूधमें डालकर पकाओ। इसके बाद उन्हें खरलमें डालकर ऊपर से तोले- तोलेभर सोंठ और अजवायन मिला दो और खूब कूटो | ये भिलावे भी शुद्ध होंगे। इनको भी दवा के काम में ले सकते हैं। जिसे भिलावे पकाने हों, उसे अपने सारे शरीरको काली तिलीके तेलसे तर कर लेना चाहिये और भिलावोंसे पैदा हुए धूएँ से बचना चाहिये | भिलावे सेवन में सावधानी । भिलावा खानेवाले अपने हाथों और मुखको घीसे चुपड़कर ● भिलावा खाते हैं। कितने ही पहले तिल या नारियलकी गिरी चबाकर पीछे इन्हें खाते हैं। भिलावा अनेक रोग नाश करता है, बशर्ते कि विधिसे सेवन किया जाय । इसके युक्ति-पूर्वक खानेसे कोढ़ निश्चय ही नष्ट हो जाता है और हिलते हुए दाँत पत्थर की तरह जम जाते हैं । पर अगर यही बेकायदे या मात्रा से ज़ियादा खाया जाता है, तो अत्यन्त गरमी करता है; मुँह, सालू और दाँतोंकी जड़में सूजन पैदा कर देता और दाँतों को हिलाकर गिरा देता तथा खूनमें खराबी कर देता है। इसलिये इस अमृत समान फलको शास्त्र-विधिसे सेवन करना चाहिये For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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