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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विष-उपविषोंकी विशेष चिकित्सा-"भिलावे"। ७६. मुंहमें लग जाता है, तो तत्काल फफोले और ज़ख्म हो जाते हैं तथा उपाड़ होता और सूजन आ जाती है। निघण्टु में लिखा है, तिल और नारियलकी गिरी इसके दर्पको नाश करते हैं। हिकमतके निघण्टुमें ताजा नारियल, सफेद तिल और जौ इसके दर्प-नाशक लिखे हैं। वैद्यक-ग्रन्थों में इसके फलकी मात्रा चार रत्तीसे साढ़े तीन माशे तक लिखी है; पर हिकमतमें सवा माशे लिखी है । “तिब्बे अकबरी' में लिखा है, नौ माशे भिलावा खानेसे मृत्यु होती है और बच जानेपर भी चिन्ता बनी ही रहती है । - वैद्यकमें मिलावा विष नहीं माना गया है, पर हिकमतमें तो साफ विष माना गया है। अगर यह बेकायदे सेवन किया जाता है, तो निस्सन्देह विषके-से काम करता है। इसके तेलको सन्धिवात और नस हट जानेपर लगाते हैं । अगर इसमें दूसरी दवा मिलाकर इसकी ताकत कम न की जाय, तो इससे चमड़ीके ऊपर छाले पड़कर फफोले हो जायें। ___ संस्कृतमें भल्लातक, फारसीमें बलादर, अरबीमें हब्बुलकम, बँगलामें भेला, मरहठी में भिलावा और बिबवा तथा गुजरातीमें मिलामाँ कहते हैं। भिलावेका पका फल पाक और रसमें मधुर, हलका, कसैला, पाचक, स्निग्ध, तीक्ष्ण, गरम, मलको छेदने और फोड़नेवाला, मेधाको हितकारी, अग्निकारक तथा कफ, वात, व्रण, पेटके रोग, कोढ़ बवासीर, संग्रहणी, गुल्म, सूजन, अफारा, ज्वर और कृमियोंको नष्ट करता है। भिलावेकी मींगी मधुर, वीर्यवर्द्धक, पुष्टिकारक तथा वात और पित्तको नष्ट करनेवाली है। हिकमतमें लिखा है, भिलावा गरमी पैदा करता, वायुको नाश करता, दोषोंको स्वच्छ करता, चमड़ेमें घाव करता, शीतके रोगपक्षवध, अर्दित-मुंह टेढ़ा हो जाना और कम्प तथा मूत्रकृच्छ्रमें लाभदायक है । इसके सेवनसे मस्से नाश हो जाते हैं। For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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