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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विष-उपविषकी विशेष चिकित्सा--"चिरमिटी"। ७७ हितकारी तथा विष, राक्षस ग्रह-पीड़ा, खाज, खुजली, कोढ़, मुंहके रोग, वात, भ्रम और श्वास आदि नाशक हैं । बीज वान्तिकारक और शूलनाशक होते हैं । सफ़ेद चिरमिटी विशेषकर वशीकरण है। ___ सफ़ेद चिरमिटीका अर्क बालोंको पैदा करनेवाला तथा वात, पित्त और कफ नाशक है । लाल चिरमिटीका अर्क मुख-शोष, श्वास, श्रम और ज्वर नाश करता है। . हिन्दीमें घुघुची, चिरमिटी, चोंटली और रत्ती कहते हैं। बँगलामें कुच और सादा कुञ्च, संस्कृतमें गुञ्जा और गुजराती में चणोटी कहते हैं । इसके पत्ते, बीज और जड़ दवाके काम आते हैं। मात्रा १ से ३ रत्ती तक। चिरमिटोके जहरकी शान्तिका उपाय । चौलाई के रसमें मिश्री मिलाकर पीने और अरसे दूध पीनेसे चिरमिटीका विष नाश हो जाता है । चिरमिटी-शोधन-विधि । चिरमिटीको काँजीमें डालकर तीन घण्टे तक पकाओ, वह शुद्ध हो जायगी। औषधि-प्रयोग। (१) दो रत्ती कच्ची लाल चिरमिटी गायके आध पाव दूधके साथ पीनेसे उन्माद रोग चला जाता है। (२) सफ़ेद चिरमिटीकी जड़ या फलोंको पानीके साथ पीसकर लुगदी बना लो; जितनी लुगदी हो उससे चौगुना सरसोंका तेल और तेलसे चौगुना पानी लो । इनको मिलाकर मन्दाग्निसे पका लो । जब तेल-मात्र रह जाय, उतार लो। इसका नाम “गुञ्ज तैल" है। इसकी मालिशसे गण्डमाला आराम हो जाती है। (३) सफ़ेद चिरमिटी, उटंगनके बीज, कौंचके बीज. और गोखरू--इन्हें बराबर-बराबर लेकर पीस-छान लो और फिर बराबरकी For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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