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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३२ ) ॥ सातमुं ॥ ॥ भरत नरेसर भरत क्षेत्र, चक्रि इण ठामे ॥ आव्यो संघ सनी सनूर, मन आणंद पामें ॥१॥ कंचनमय प्रासाद कीध, उत्तंग उदार ।। मंडप तोरण विविध जाल, मालित च उ बार ॥२॥ घणु पणसय मित मणि तणिए, थापी रुपभनी मूति ॥ दान दया कर तीर्थथी, पसरी जग जस कीर्ति ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥ आठमुं॥ ॥ रुषभनी प्रतिमा मणिमयी, भरतेश्वर कीधी । ते प्रतिमा छे इणे गिरि, एह वात प्रसिद्धि ॥१॥ देखे दरिसण कोय जास, मानव इणे लोके ॥ त्रीजे भवे जे मुक्ति योग्य, नर तेह विलोके ॥ २ ॥ स्वर्ण गुफा पश्चिम दिशे ए, ए छे जास अहि ठाण ॥ घन मुहंकर विमलगिरि, ते प्रणेमुं हित आण ॥३॥ इति। ॥ नवमुं॥ ॥ सगरादिक नरपति अनेक, इणे पर्वत आव्या ॥ विविध विचित्र विराजमान, प्रासाद कराव्या ॥ १॥ भक्ति धरी जिनवर तणी, बहु प्रतिमा थापी ॥ तिणे महियलमा तेहनी, कीरति अति व्यापी ॥ २ ॥ सुरपति नरपतिना था ए, इहां बहु उद्धार। ते शत्रुनय सेविये, दान सकल सुखकार ॥ ३ ॥ इति ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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