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चोथु.
॥ चैत्री पुनमनो अखंड, शशीधर जिम दोपे, अंगारक आदि अनेक, मह गणने झोपे ॥ १॥तिम पर तीर्थी देवथी, जेह अधिक विराजे ।। लोकोत्तर अतिशय अनंत, दीपंत दीवाजे ॥ २ ॥ चैत्री पुनमने दोने ए, भनो एह भगवंत ।। श्री विजयराज मूरिदनो, दान सकल सुख हुँत ।। ३ ।। इति ।।
___पांच मुं.
॥ आदीश्वर जिनरायनो, पेहेलो जे गणधार ॥ पुंडरिक नामें थयो, भविजनने सुखकार ।। १ ॥ चैत्री पुनमने दिने, केवल सिरि पानी, इण गिरि तेहथी पुंडरिक; गिरि अभिधा पामी ॥२॥ पंच कोडि मुनिशुं लह्या ए; करी अनशन शिव ठाम ।। ज्ञानविमल मुरि तेहना; पय प्रणमे अभिराम ।। ३ ॥ इति ।।
॥छर्छ. ॥ ॥ जोयण शत परिमाण एक, जे पहिले आरे ॥ बीजे आरे जायण जेह, एंशी विस्तारे ॥ १ ॥ तिम बीजे जायण रार, चोथे पंचास ।। पांचमे आरे बार सार, विस्तार छे जास ॥२॥ छठाने अंते हुए, एक हस्त जस मान ॥ एह अवस्थित छे सदा, ते प्रणमे मुनि दान ॥ ३ ॥ इति ॥
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