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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २२ ) सुख संपत्ति लीयें || प्रभुनामे भवभय तर्णा, पातक सब दहिये ॥ २ ॥ ॐ ह्री वर्ण जोडी करीए, जपीये पारस नाम || विष अमृत थई पर गमे, पावे अविचल ठाम || ३ || इति ॥ ॥ आठमुं ॥ 11 श्रीपार्श्वनाथ नमस्तुभ्यं, विघ्न विध्वंस कारिणे ॥ निर्मल स प्रभानंदे, परमानंद दायिने ॥ १ ॥ अश्वसेना वनपाल, कुलचूडामणि प्रभो || वामासुनो नमस्तुभ्यं, श्रीमत्पापं जिनेश्वर ||२|| क्षितिमंडल मुकुटं, धार्मिक निकटं, विश्वप्रगटं, चारुभटं ॥ भवरेणु समीरं, जलनिधितीरं, सुरगिरिधीरं गंभीरं || जगत्रयं शरणं, दुर्गति हरणं दुर्द्धर चरण; सुखकरणं ॥ श्रीपार्श्वजिनेंद्र; नत नागेंद्र; नमत सुरेद्रं कृतभद्रं ॥ ३ ॥ कमठे धरणेंद्रे च स्वोचितं कर्म कुर्वती ॥ प्रभुस्तुल्य मनोवृतिः, पार्श्वनाथ श्रियेऽस्तु वः ॥ ४ ॥ इति ॥ ॥ नवसुं ॥ || प्रणमामि सदा म पार्श्वजिनं, जिननायक दायक सुख घनं ॥ घनचारु महोत्तम देहधरं, धरणी पति नित्य सुसेवकरं || ॥ १ ॥ करुणा रस रंचित भव्य फणि, फणि सप्त शोभित मौलिमणि ॥ मणि कंचन रूप त्रिकोटि घटं, घटितासुर किन्नर पार्श्वतटं ॥२॥ तटिनीपति घोष गंभीर स्वरं, स्वरनाकर अश्व सुसेन नरं ॥ नरनारी नमस्कृत्य नित्यमुदा, पद्मावतो गावतो गीत सदा ॥ ३ ॥ सहनेंद्रिय गोप यथा कमठं, कमठासुर वारण मुक्तहरं ।। हट हेलित 11 For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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