________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(२१) घन ते घडी जे घडी नयण दीसे, भली भगति भावे करो वानविषे
२॥ अहो एह संसार छे दुःख दोरी, इंद्रजालमां चित लागी ठ. गोरी ॥ प्रभु मानीए विनती एक मोरी,मुज तार तुं तार वलीहारी तोरी ॥३॥ सही सुन जंजालमा संग मोह्यो, घडीआलमां काल र. मतो न जोयो । मुधा एम संसारमा जन्म खोयो, अहोघृत तणे का.. रणे जळ विलोयो ॥४॥ एतो भ्रम लोके सुवा भ्रांति धायो, जइ सुकतणी तंतु मांहे भरायो । सुके जंबु जाणी ग्रभे दुःख पायो, प्रभु लालचे जीवडो एम वाह्यो ॥ ५ ॥ मम्यो नम भुल्यो रम्यो कर्म भारी, दयाधर्मनी वात नवी वीचारी ॥ तोरी नम्र वाणी परम सुखकारी, तीहुं लोकना नाथ नवी संभारी ॥ ६॥ विषय वेलडी सेलडी करी जाणी, भजी मोह तृष्णा तजी तोरी वाणी ॥ एवो भलो मुंडो नीज दास जाणी, प्रभु राखीए बांहनी छाह प्राणी ॥ ७ ॥ मारा विविध अपराधना कोड सहीए, प्रभु सरणे आव्या तणी लाज वहीए ॥ वली घणी घणी विनति एम कहीए, मुज मानत परमहंस रहोए ॥ ८ ॥ कलस ॥ कृपामूर्ति पार्श्वस्वामी मुगती गामी ध्याइये। अति भक्ति भावे विपत जावे तास संपती पाइए । प्रभु महिमा सागर गुण वैरागर पास अंतरीक जे स्तवे । तस सकल मंगल जयजयारव आनंद वर्धन विनवे ॥ ९ ॥ इति ।
॥ सातमुं ॥ ॥ जय चिंतामणि पार्श्वनाथ, जय त्रिभुवन स्वामी ॥ अष्टकर्म रिपु जीतीने, पंचम गति पामो ॥ १ ॥ प्रभुनामे आनंदकंद,
For Private And Personal Use Only