SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १३ ) ॥ श्रीजुं ॥ ॥ शांतिकरण श्री शांतिनाथ, गजपुर धणी गाजे ॥ वीस्वसेन अचीरा तणो, सुत सबळ दीवाजे ॥ १ ॥ धनुष चालीश हेमवर्ण काय, मृग लंछन छाजे || लाख बरसनुं आउखु, अरीयण मद भांजे ॥ २ ॥ चक्रवती प्रभु पांचमाए, शोळमां श्री जगदीश ॥ रुपविजय कहे मुझ मल्यो, पुरण सकल जगीश ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥ श्री कुंथुनाथजीनुं चैत्यवंदन ॥ ॥ सतरमां श्री कुंथुनाथ, श्री राणी जायो ॥ गजपुर नयरी सुरीराय, जाडवायस पायो ॥ १ ॥ सहस पंचाणु वरस आयु छाग लंछन धायेा ॥ धनुष पात्रोश वर देहडी, हेम वर्ण सुहायो || २ || चोसठ सहस वधु घणोए, पायक संख्या न पार ॥ रुपविजय कहे साहेबा, तृतये मुज तार ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥ बीजु ॥ ||लब' सत्तम सुरभव तजी, गजपुर नयर निवास ॥ राक्षसगण कृतिका जनि, कुंथुनाथ षराशि || १ || शोल वरस छद्मस्थमां, जिनवर योनि छाग || घातिकर्म घातें करो, तिलक तले वीतराग ॥२॥ शैलेसी करणे करीए, एकसहस परिवार || शिव मंदिर सिधावतां, वीर घणुं हुंशीयार || ३ || इति ॥ १ सर्वार्थसिद्धना देव. For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy