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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १६० ) मोहे ॥ १॥ धनुष पांचसे जेहनु, कायार्नु मान ॥ चार सहसयु व्रत लीये, गुण रयण विधान || लाख चोराशी पूर्वनू, आउखु पाले ॥ अमिय समी दायें देशना, जग 'पातिक टाले ॥ हारे ज. ॥२॥ सहस चोराशी मुनिवरा, प्रभुनो परिवार ॥त्रण लक्ष साध्वी कही, शुभ मति सुविचार । अष्टापद गिरि चढी, टाली सवि कर्म ।। चडी गुणठाणे चउदमें, पाम्या शिव शर्म । हारे पा० ॥३॥ गोमुख यक्ष चक्रेश्वरी, प्रभु सेवा सारे ।। जे प्रभुनी सेवा करे, तस विधन निवारे । प्रभु पूजायें प्रणमं सदा, नव निधि तस हाथे ॥ देव सहस सेवा परा, चालें तस साथे ॥ हारे चा ॥ ४॥ युगला धर्म निवारणो, शिव मारग भाखे ॥ भवजल पडता जंतुने, ए साहिब राखे ॥ श्रीनयविजय विबुध जयो, तपगछमां दीवो ॥ तास शीश भावें भणे, ए प्रभु चिरंजीवो ॥ हारे ए प्रभु० ॥५॥ ॥ श्रीअजितनाथ जिन स्तवन ॥ ॥ आबु अचळ रलीयामणोरे लो-ए देशी ॥ अजित जिणंद जुहारियेरे लो, जितशत्रु विजया जातरे सुगुण नर ॥ नयरी अयोध्या उपनारे लो, गजलंछन विख्यातरे मु०॥ अ०॥ १॥ उंचपणुं प्रभुजीत[रे लो, धनुष साढा सें च्याररे सु० ॥ एक सहसयुं व्रत लियेरे लो, करुणारस भंडाररे १ पाप. २ खजानो. For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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