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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५९) काढ्यो काढ्यो कचरो ने भ्रांतिरे ॥ इहां अति उंचा सोहे चारित्र चंदुआरे, रुडी रुडी संवर भातिरे । दु० ॥२॥'कर्म विवर गोपी इहां मोती झूबणारे, झूलइ झूलइ धीगुण आठरे । बार भावना पंचाली अचरय करेरे, कारि कोरि कोरणि काठरे ॥ दु० ॥ ३ ॥ इहां आवी समता राणाश्युं प्रभु रमोरे, सारी सारी थिरता २सेज रे। किम जइ शकश्यो एक वार जो आवशोरै, रंज्या रंज्या हियडानि हेजरे । दु० ॥ ४ ॥ वयण अरज मुणी प्रभु मनमंदिर आवियारे, आ तूठा तूठा त्रिभुवन भाणरे ॥ श्रीनयविजय विबुध पय सेवक इम भणेरे, तेणि पाम्या पाम्या कोडि कल्याणरे ॥ दु० ॥५॥ श्रीयशोविजयोपाध्याय कृत-चौद बोलनी चोवोशी श्रीऋषभदेव जिन स्तवन। (आज सखी संखेसरो, ए देशी) ऋषभदेव नितु वंदिये, शिवमुखनो दाता ॥ नाभि नृपति जेहनो पिता, मरुदेवी माता ॥ नयरी विनीता उपनो, वृषभ लछन सोहें । सोवन वन सुहामणो, दीठडे मन मोहें ॥ हारे दीठडे मन १ गुफा. २ पथारी. ३ तुष्टमान थाय. For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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