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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ७ ) जन्मठाम वणारशीर, देह कनकनो वान || रुपविजय कहे साहिबा, दीये शोवरमणी दान | ३ ॥ इति ॥ ॥ श्रीजु ॥ ॥ गेविन छोयो चव्या, वाणारसी पुरी वास ॥ तुला - शाखा जनमिया, तप तपिया नव मास || १ || गण राक्षस बुक योनियें शोभे स्वामी सुपास ॥ सरिस तरू तलें केवली, ज्ञेय अनंत विलास ॥२॥ महानंद पदवी लहोए, पाम्या भवनो पार ॥ श्री पवीर कहे म पंचसया परिवार || ३ ॥ इति ॥ ॥ श्री चंद्रप्रजजिन चैत्यवंदन ॥ ॥ चंद्रम चंद्रावती, पुरि चविया वैजयंत ।। अनुराधायें जनमीया, वृश्चिक राशि महंता || १ || मृगयोनि गण देवनो, केवल विण त्रिक मास || पाभ्या नाग तरू तले, निर्मल नाण विलास ||२|| परमानंद पद पामियार, वीर कहे निरधार | साये सलूणा शोभिता, निवर एकहजार || ३ || इति ॥ ॥ बीजु ॥ ॥ महसेन मोटो राजीओ, सतो लखमणा राणी ॥ चंद सम उज्वल वदन कांति, जनम्यो जयकारी ॥ १ ॥ चंद्रा नयरी जेहनी, चंद लंछन कहीए ॥ चंद्र प्रभजिन आठमा, नामे गहगहोर || २ || धनुष दोढशे जोन बनुए, दश लख पूर्व आय ॥ रूपविजय प्रभु नाम थी, दीन दीन बहु सुख थाय ॥ ३ ॥ इति ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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