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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५) माम ॥ ७॥ नंदीसर विदिसे सोखस कुलगिरि तीस । मेरूवन अस्सी दस कुरु गजदंते वीस । मानुषोत्तर परबत च्यार च्यार खुकार । जैसो अतिसुंदर वासकार मकार ॥७॥ ॥(ढाल ३)॥ दिग्गजगिर चालीस । असीजह सुजगीस । कंचन गिर वरुए.। एक सहस धरुए ॥ ए॥ वृत्त दीरघ वैताढ्य । वीस सत्तरसो थाढ्य । सत्तर महा नदीए । पंच चूला सदीए ॥ १० ॥ जंबू प्रमुख दसरूक्ख । श्यारेसै सत्तर सुक्ख । कुंभ त्रण सय असी ए।वीस जमग वसी ए ॥११॥ ॥(ढाख)॥ त्रिण सहस सो एक निवां)रे । जिनवर प्रासाद वखाणूरे । वीससो ए अंक गुणीयेरे। तीर्थकर प्रतिमा शुणीये ॥ १५ ॥ त्रिण लाख सहस वलि त्र्यासीरे । प्रतिमा आठ सोने असी । सरवाले सब मेली जेरे । जिनवर प्रसाद नमीजे ॥ १३ ॥ आठकोकि सत्तावन लक्खारे । दोयसे निव्यासी कयरुक्खा । हिव प्रतिमा ग्यान कहीजेरे । जिनवरनी आण वही जे ॥ १४ ॥ पनरेसे वैतालीस कोमीरे। अमवन्न खख अधिक जोमी उत्तीस सहस अधिक कही रे । प्रतिमा सगली सरदहीयेरे ॥ १५॥ ॥( ढाल ५ मी)॥ जोइस वितर प्रतिमा सासती । असंख्यात वलि जेहोजी । पाय कमल तेहना नित प्रणमीयेः। सोवन वरण सुदेहो जी ॥१॥ बिनयकरी जिन प्रतिमा वंदीये। सुंदर सकल सरूपोजी। पूजे प्रतिमा चौविह देवता । वलिय , विद्याधर जूपो. जी.॥२॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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