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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४.) आठ प्रातीहारज ते सही होइए || २५ || जिएसमवसरणनी रिद्धिदीवी जीये । तेड़ धनधन्य अवतार पायो तिये । पास अरदास सुणी वंचित पूरज्यो । हिव मुफ ताहरो सुद्ध दरसण हुज्यो ॥ २६ ॥ (कलश) इम समवसरणें रिद्धिवर सदु जिनवर सारखी । सरददै तें वह सुद्ध समकित परम जिन धर्म पारखी । प्रकरण सिद्धांत गुरू परंपरसुणी सदु अधिकार ए । संस्तव्यो पास जिद पाठक धर्मवर्द्धन धार ए ॥ २७ ॥ इति श्री समवसरण विचार जाषा गति स्तवनं ॥ अथसंकल साखता चैत्य नमस्कार स्तवनम् ॥ ॥ ढाल बेकर जोडी तांम ए चाल ॥ रिषजानन वर्धमान | चंद्रानन जिन । वारिषेण नामे जिना ए ॥ १ ॥ तेहता प्रासाद त्रिभुवन सासता । प्रणमुं विंब सोहामणा ॥ २ ॥ चेईहर सगको कि लाख बहुतर । चेंईय प्रतिमा सो असीए ॥ ३ ॥ तेरेसे निव्यासी कोमि । साठ लाख सुंदर । जुवनपती मांहि मन वसीए ॥ ४ ॥ बारे देव लोक प्रासाद चौरासी लाख । सहस बिन्नूनें सातसैए ॥ ५ ॥ ( ढाल श्रन्यो तिहां नरहर ए चाल ॥ ) हिवे नव ग्रीवेकै पंचानुत्तर सार । चेईहर त्रासय त्रेवीसा सुविचार प्रत्येके प्रतिमा वीसासो तिहां जांए । मत्रीस सदस सतसाठ गुण खांण ॥ ६ ॥ नंदीसर बावन कुंकल रुचक 'वखांण । चऊ चऊ ईहर साठ सबै त्रिदु गए। इकसो चौवीसे गुण प्रतिमा चिहुं नांम । प्यारसे चालीसा सात सहस प्रण । For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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