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(११३) माणरे ॥ सु०॥ लखमण राम खुशी अयारे लाल । निरखे राणो राणरे ॥ सु० ॥॥ स्नान करी निरमल जलेंरे लाल । पावक पासें आयरे ॥ सु०॥ ऊली जाणे सुरांगनारे लाल । अनुपम रूप दिखायरे ॥ सु० ॥३॥ नर नारी मिलीया घणारे लाल । ऊना करे हाय हायरे ॥ सु० ॥ जस्महुसी इण श्रागमेरे लाल । राम करे अन्यायरे ॥ सु०॥ ॥ राघवविन वां ग्यो दुवेरे लाल । सुपर्ने ही मन कोयरे ॥ सु० ॥ तो मुफ अगनि प्रजालज्योरे लाल । नहीं तो पाणी होयरे ॥सु०॥५॥ श्म कहि पैठी आगमेरे लाल । तुरत श्रयो अगनि नीररे॥सु०॥ जाणे यह जलसु नखोरे लाल । जीले धरम सुधीररे ॥ सुन ॥६॥ देवकुशम वरषा करेरे लाल । एहसती सिरदाररे॥सु०॥ शीता धीजे ऊतरीरे लाल । साख नरे संसाररे ॥ सु० ॥ ७॥ रलियायत सहुको थयारे लाल । सगले श्रया उरंगरे॥सु०॥ लखमण राम खुशी श्रयारे लाल । शीता शील सुरंगरे ॥ सु० ॥ ॥ जगमांहें जस जेहनोरे लाल । अविचल शील कहायरे ॥ सु० ॥ कहे जिन हरष सती तणारे लाल । नित प्रणमी जे पायरे ॥ सु०॥ ए॥ इति शीता सती सकाय संपूर्ण ॥
॥ अथ उपदेस सझाय लिख्यते ॥ दमका नांहि नरोसा सांहै । करले चलनेका सामान । तन पिंजरसें निकश जागा। जिनमें पंजी प्राण ॥ दण्॥१॥ लख चौरासी जोनीमें नटक्यो । उपनों गरजा धानें । सवा नवमास वश्यो अंधकूपमें । मनुष्यरूप सनमान ॥ द० ॥॥ उत्तम कुलमें जनम लियोहै । सुखमें खाण अरुपाण । जीम पड्यां
बृ०८
लिया
खुशी अयार
लाल । अविचलित प्रणमी
जे पायरे ।
अथ उपदो करले च
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