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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (११५) हुँ॥थयो कंचन पुर रायरे॥९॥ बापसुं संग्राम मांमीयो ॥९॥ साधवी लीयो समजायरे॥९॥३॥ वृषल रूप देखीकरी ॥९॥ प्रति बोध पास्यो नरेशरे ॥९॥ ॥ उत्तम संजम आदखोहुं॥ देवता दीधो वेषरे ॥ ९० ॥४॥कर्म खपाय मुक्तं गया॥ हुं० ॥ करकंडू रिषि रायरे ॥ ९० ॥ समयसुंदर कहे साधुने ॥ हुं०॥ प्रणम्यां पातिक जायरे ॥ हुं ॥ ५॥ इति प्रथम प्रत्येकबुधनी ॥ अथ भरत चक्रवर्ती भावमुनिनी सझाय ॥ ॥जरतजी मनही में वैरागी । मनहीमें वैरागी । नरतजी मन । सहस बत्तीस मुगट ब राजा । सेवा करे वह लागी। चौसम सहस अंतेवरि जाके । तोही न दुवा अनुरागी। जरतजी मनहीमें वैरागी ॥१॥ लाख चोरासी तुरंगम जाके । बन्नु कोम है पागी । लाख चोराशी गजरथ सोहै। सुरता धरमसुं लागी जरत ॥२॥ च्यार क्रोम मण अन्नज ऊपमे । खूण दश लाख मण लागे । तीनकोम गोकुल नित दूजे । एक कोमी हल सागी ॥ जर० ॥ ३ ॥ सहस बत्तीस देस वफ लागी । लए सरबके त्यागी । उन्नु कोम गांमके अधिपति । तोही न हुवा अनुरागी ॥ जर ॥ ४ ॥ नवनिध रतन चनगमा वाजें । मन चिंता सरब लागी । कनक कीरत मुनिवर वंदत है। दीजो मुगतिमें मांगी ॥ जर ॥ ५॥ इति जरतजीका स्वाध्याय ॥ ॥ अथ शीता सतीनी सझाय ॥ ॥ जल जलती मिलती घणीरे । कालो काल अपाररे । सुजाण शीता । जाणे केसू फूलियारे लाल राता खैर अंगार रे ॥सु०॥१॥धीज करे सीता सती रे लाल सीलतणे परिः For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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