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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ४२४ ] कदाग्रहकी कल्पनाको स्थापन करनेके लियेऔर सत्यबाते का निषेध करने के लिये पर्युषणा विचारके लेख में उत्सूत्र भाष बोंको और कुयुक्तियों के विकल्पोंके प्रत्यक्ष मिथ्या गप्पोंक लिखके भी शास्त्रानुसार युक्ति पूर्वक लिखनेवालेको शाख मार्गमे विपरीत न चलनेके लिये सावधानी दिखाते हैं सो तो प्रत्यक्ष धूर्ताचारोका लक्षण है इमको पाठक वर्ग स्वयं विचार लेवेंगे: और (समालोचनाकी समालोचना शास्त्र मर्यादा पूर्वक करनेको लेखक तैयार है ) सातवें महाशयजोके इस लेख पर भी मेरेको इतनाहीं कहना है कि-पञ्चांगीकी श्रद्धा रहित कदाग्रहमें आगेवान, अनिनिवेशिक मिथ्यात्वको सेवन करने वाले तथा अन्यायमें प्रवर्तने वाले होकरकेभी शास्त्रा. नुसार युक्ति पूर्वक मेरे सत्य लेखों की समालोचना आप कैसे कर सकोगे क्योंकि जो आप पञ्चांगीकी श्रद्धा वाले आत्मार्थी तथा न्यायमें प्रवर्तने वाले होवो तबतो जो जो मैंने पर्यषणा विचारके लेखकी पंक्ति पंक्तिकी शास्त्रानुसार युक्ति पूर्वक समालोचना करके आपके लेखोंको उत्सूत्र भाषण रूप प्रत्यक्ष मिथ्या ठहराये है और सत्य बातोंको प्रगट करी है उसीको आद्यन्त पर्यंत पढ़के अपनी उत्सूत्र भाषणोंकी और प्रत्यक्ष मिथ्या लेखोंके भूलोंकी श्री चतुर्विध संघ समक्ष आलोचना लेकर शास्त्रानुसार युक्ति पूर्वक सत्य बातोंको ग्रहण करो पीछे मेरे लेखकी समालोचना करनेकी आपमें योग्यता प्राप्त होवे तब मेरे लेखकी समालोचना करनेको तैयार होना चाहिये। इतने परभी पर्युषणा विचार के सब लेखोंको आप सत्य समझते हो तो पंक्ति पंक्तिके For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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