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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ३१५ ] कलिकालसर्वज विरुद-धारक श्रीहेमचन्द्राचार्यजी कृत श्री योगशास्त्र की वृत्ति ३, और आदिशब्दसे श्रीहरिभद्रसरिजी कृत श्रीआवश्यकजी सूत्रको शहद्वत्ति वगैरह अनेक शास्त्रा. नुसार-सामायिक करने वाले दो प्रकारके प्रावककी विधिमें खुलासा पूर्वक प्रथम करेमिभंतेका उच्चारण किये बाद पीछे में इरियावहीका प्रतिक्रमण करना अच्छी तरहसे स्पष्ट करके लिखा है। और श्रावक अपने घरमें वा गुरु अभावसे पौषध शालामें सामायिक करे वहां 'जाध नियमं पज्जुवा सामि' ऐसा पाठ उच्चारण करे और श्रीगुरुजी महाराजके सामने सामायिक करे वहां 'जावसाहू पज्जुवा सामि' ऐसा पाठ उच्चारण करे और श्रीजिनमन्दिरमें सामायिक करे वहां 'जावईय पज्जुवा सामि' ऐसा पाठ उच्चारण करे-इसका उपरोक्त शास्त्रोंमें खुलासै पाठ है । और भी श्रीतपगच्छके श्रीरत्नशेखरसरिजी कृत श्रीश्राद्धप्रतिक्रमणवृत्ति ( श्रीवन्दीता सत्रकी अर्थदीपिका टीका ) में भी प्रावकके नधमा सामायिक व्रताधिकारे पर मुजब ही पाठ है और उसीका भाषान्तर श्रीमुम्बईवाले श्रावकभीमसिंह माणकने निर्णयसागर प्रेसमें श्रीजैनकथा रनकोष भाग चौथा (४) में छपवाया है जिसके पृष्ठ ३३० से ३३८ तक देख लेना : और ऊपरोक अनेक शास्त्रोंके पाठ भावार्थ सहित एक दूसरा और भी ग्रन्थ छपता है उसीमें विस्तार पूर्वक अनेक पाठ छपगये है जिसका भेद आगे खोलुंगा अब मोक्षाभिलाषी सत्यग्राही सज्जन पुरुषोंको इस जगह विचार करना चाहिये कि-श्रीतीर्थङ्कर गणधरादि For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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