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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ २५२ ] ओ गूढहिययमाइलो। सढसीलोयससल्यो-तिरिया बंधए जीवो ॥३॥ उम्मग्गदेसणाए-चरणं नासन्ति जिणवरिंदाणं। वावन्नदंसणा खलु-नहुलभातारिसादटुं ॥४॥ इत्याद्यागम वचनानि श्रुत्वापि स्वाग्रहग्रहग्रस्त चेतसो यदन्यथान्यथा व्याचक्षते विधति च-तन्महासाहसमेवा नर्वापारासारसंसार पारावारोदरविवरभावि भूरिदुःखभाराङ्गीकारादिति । ___टीकानो अर्थ-बलती आगमा पेसनारमाणसनासाहसकरतां पण अधिक आ अतिसाहसछे के सूत्रनिरपेक्ष देशना कडवां एटले भयङ्कर फल आपनारीछे एम जाणनारा होइने पण सूत्रबाह्य एटले जिनागममां नही कहेल अर्थमां ए वस्तु विचारमा निर्देश एटले निश्चय आपीदेछे-एटलेशंका तेकहेछे-मरीचि एकदुर्भाषितथी दुःख नादरियामा पडी क्रोडाक्रोडसागरोपम भम्यो।१। उत्सत्र आचरतां जीव चीकणा कर्म बांधेछे संसारवधारेले अने मायामृषा करेछे ।२। उन्मार्गनी देशना करनार मार्गनो नाशकरनार गूढहृदयथी मायावी शठ अने सशल्य जीव तिर्यंचनो आयुष्य बांधेछे ।३। जेओ उन्मार्गनी देशनाथी जिनेश्वरना चारित्रनो नाशकरेछे तेवा दर्शनभ्रष्ट लोकोने जोवा पणसारा नहीं।४। आवगेरे आगमना वचनो सांभलीने पण पोताना आग्रहमां ग्रस्त बनी जे कांइ आडं अवलुं बोलेछे तथा करेछे ते महा साहसजछे केमके एतो अपार अने असार संसाररूप दरि याना पेटमा थनार, अनेक दुःखनभार एकदम अङ्गीकार करवा तुल्य छ । और फिर भी तीसरा भागके पृष्ठ २४२ का पाठ भाषा सहित नीचे मुजब जानो यथा For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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