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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ २३४ ] फिर क्या तीर्थङ्करों के कल्याणिक १२० से भी ज्यादे गिनना होगा कभी नही इस हेतु से भी अधिक मास नही गिना जाता) इस लेख की समीक्षा करके पाठकवर्गको दिखाता हुं जिसमें प्रथमतो उपरके लेखमें न्यायरत्नजीने अधिकमासको गिनती में लेने वालोंको तीसरा दूषण लगाया इस पर तो मेरे को इतनाही कहना उचित है कि न्यायरत्न जीने श्री अनन्ततीर्थङ्कर गणाधरादि महाराजोंकी आशातना करके खूब मिथ्यात्व बढ़ाया है क्योंकि श्रीअनन्त तीर्थङ्कर गणधरादि महाराज अधिक मासको गिनतीमें मान्य करते हैं सो अनेक सिद्धान्तों में प्रसिद्ध है और न्यायरत्नजी अधिक मासको गिनती मान्य करने वालोंको दूषण लगाते हैं जिनसे श्रीतीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंकी प्रत्यक्ष आशा. तना होती है इसलिये जो न्यायरत्नजीको श्रीतीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंकी आशातनासें अनन्त संसार वृद्धिका भय लगता हो तो अधिक मासको गिनतीमें लेने वालोंकों दूषण लगाया जिसकी आलोचना लेकर अपनी आत्माको दुर्गतिसे बचाना चाहिये आगे न्यायरत्नजीकी जैसी इच्छा मेरा तो धर्मबन्धुकी प्रीतिसे लिखना उचित है सो लिख दिखाया है और अधिक मासको श्रीतीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंने गिनतीमें मान्य किया है उसीके अनुसार कालानुसार युक्तिपूर्वक वर्तमानमें भी अधिक मासको आत्मार्थी पुरुष मान्य करते हैं जिन्होंको एक भी दूषण नही लग सकता है परन्तु कल्पित दूषणोंको लगाने वालों को तो उत्सत्र भाषणरूप अनेक दूषणों के अधिकारी होना पड़ता है मो आत्मार्थी विवेकी सज्जन पुरुष इन्ही पुस्तकके पढ़नेसे स्वयं विचार सकते हैं। For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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