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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ २३३ ] उत्थापन करते है और चार मासके १२० दिनका वर्षाकाल सम्बन्धी उपरका पाठ श्रीगणधर महाराजने कहा है तथापि इसका तात्पर्य्य समझे बिना दो श्रावण होनेसे पांच मासके १५० दिनका वर्षाकालमें उपरका पाठ सूत्रकार तथा वृत्तिकार महाराजके विरुद्धार्थ में न्यायरत्नजी लिखते हैं इसलिये न्यायरत्नजीको श्रीसमवायाङ्गजी सूत्रके पाठोंका तात्पर्य समझमें नही आया मालुम होता है तो फिर न्यायरत्न का और विद्यासागरका जो विशेषण श्रीशान्तिविजयजी ने धारण किया है सो कैसे सार्थक हो सकेगा सो पाठक वर्ग सज्जन पुरुष अपनी बुद्धिसे स्वयं विचार लेना ; और न्यायरत्नजी कालपुरुषकी घोटीकी भ्रान्तिसे अधिक मासको गिनतीमें निषेध करते हैं सो भी जैन शास्त्रोंके तात्पर्य्यको समझे बिना उत्सूत्र भाषण करते हैं इसका निर्णय इन्ही पुस्तकके पृष्ठ ४८ में ६५ तक तथा चारों महाशयोंके नामकी समीक्षामें और खास म्यायरत्नजीकेही नामकी समीक्षामें उपरमें पृष्ठ २२० । २२१ । २२२ तक अच्छी तरहसें खुलासाके साथ छप गया है सो पढ़नेसें सर्व निर्णय हो जावेगा कि शिखररूप चूलाकी उत्तम ओपमा गिनती करने योग्य दिनी है इसलिये चोटी कहके निषेध करनेवाले मिथ्यावादी है सो उपरोक्त लेख सें पाठकवर्ग स्वयं विचार लेना ;___और इसके अगाड़ी फिर भी न्यायरत्नजीने लिखा है कि ( अधिक महिनेको गिनतीमें लेनेसें तीसरा यह भी दोष आयगा कि चौरस तीर्थङ्करोंके कल्याणिक जो जिस जिस महिनेकी तिथिमें आते हैं गिनतीमें वे भी बढ़ जायगें ३० For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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