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देखिये उपर में श्रीतपगच्छ के पूर्वज श्रीनेमिचंद्र सूरिजीनें अधिक मातकी गिनती मंजूर करके तेरह चंद्रनाससे अभिवर्द्धित संवत्सर कहा और एकयु के बासठ (६२) मासकी गिनती दिखाइ अधिक मासके दिनोंकी भी गिनती खुलासे लिखी हैं इस लिये वर्तमान में श्रीतपगच्छत्राले महाशयों को अपने पूर्वजके प्रतिकुल होकर अधिकमासकी गिनती निषेध करनी नही चाहिये किन्तु अधिकमासकी गिनती अवश्यमेव मंजूर करनी योग्य हैं ।
औरसुनिये —— श्रीमलयगिरिजी कृत श्रीचंद्र प्रज्ञप्ति सूत्र वृत्तिके पृष्ठ से १०० तक तत्पाठ——
संवत युगपूरक: संवत्सरः पंचविधः प्रज्ञप्तस्तद्यथा । चंद्रश्च द्रोऽभिवर्द्धितश्चैव उक्तंव चंदो चंदो अभिवढितोय, चंदो अभिवढितो चेव । पंवसहियं जुगमिणं, दि ते लोक्कसीहिं ॥ १ ॥ पढन विझ्याउ चंदातश्यं अभिबढियं वियाणाहिं । चंदे चेव चढत्य पंचममभिवद्वियं जाण ॥ २ ॥ तत्र द्वादशपूर्णमासी परावर्त्ता यावता कालेन परिसमाप्ति मुपयाति तावत्काल विशेषश्च ंद्र तं वत्सरः । उक्तंव | पुन्निन परियट्टा पुण बारस मासे हवइ चंदो | एकश्च पूर्णमासी परावर्त्त एकश्च द्रोमासस्तस्मिंश्च चंदे नासैऽहोरात्र परिमाण विंतायामेकोनत्रिंशदहोरात्रा द्वाविंशच्च द्वाषष्टि भाग अहोरात्रस्य एतत् द्वादशभिर्गुण्यते जातानि श्रोणि शतानि चतुःपञ्चाशदधिकानि रात्रिदिवानां द्वादशच द्वाषष्टिभागा रात्रिदिवतस्य एवं परिमाणश्च द्रः संवत्तरः यस्मिन् संवत्सरे अधिकमास सम्भवेन त्रयोदश चंद्रस्य माता भवंति सोऽभिवर्द्धित संवत्सरः ॥ उक्तंव ॥ तेरसय चंद्रमासा
तथा
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