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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वह्निस्फुलिङ्ग ९४६ वाक्यमोहिनी वह्निस्फुलिङ्ग (पुं०) अंगार, लौ, ज्वाला। (जयो० ७/१८) शांत करना। वहन्यपकल्पि (वि०) ०अग्नि पक्व, आग में पका हुआ। ०सान्त्वना देना, आराम पहुंचाना। (सुद०४/३४) वाः (पुं०) वारि, जल। वारि के पयोऽम्भोऽम्बु इति धनज्जय वां (नपुं०) [व यत्] वाहन, यान, सवारी, गाड़ी, गमनागमन नाममाला। (जयो० १७/९४) का साधन। वाकं (नपुं०) [वक्+अण्] सारस समूह, उड़ान। वा (अव्य०) [वा+क्विप्] विकल्प बोधक अव्यय वाक् (स्त्री०) वाणी। वाक् सत्कविसमुदिता वाणी। (जयो०वृ० अथवा- विधोः कला वा। (सुद० २/६) ३/११५) वाज् नामक सरणी। (जयो० ६/२७) ०और, तथा (जयो०वृ० १/५) वाक्कधेनुः (स्त्री०) वाणी रूपी कामधेनु गाय। लतेव मृद्धी मृदुपल्लवा वा, (समु० १/२६) कादम्बिनी पीनपयोधरा वा। वाक्चपल (वि०) वाक्पटु। समेखलाभ्युन्नमन्नितम्बा, वाक्छल (नपुं०) गोलमोल कथन। तटी स्मरोत्तानगिरेरियं वा।। वाक्कौशलं (नपुं०) चातुर्य-वाचां वाणीनां कौशलं चातुर्यम् (सुद० २/५) (जयो० ६/१४३) मानो, क्यों (सुद० ३/७)-'सरोवरे वा हृदि कामिजेतुविरेजतुः वाक्प्रलापः (पुं०) वचनालाप। ०पटुवचन। सम्प्रसरच्छरे तु। (सुद० २/४५) वाक्सरिता (स्त्री०) वचन प्रवाह, वाणी रूपी नदी। ०एव, तरह-वा शब्दोऽत्रेवार्थ योऽभ्येति मालिन्यमहो (वीरो० (जयो० ९/६४) ०धारावाहिक कथन। १/२०) न जाने काव्ये दिने वा प्रतिभासमाने। (वीरो० वासुगङ्गा (स्त्री०) जिनवाणी। (भक्ति० ४) १/२०) वाक्यं (नपुं०) [वच्+ण्यत् तस्य कः] ०कथन, उक्ति, विचार, ०अर्थात्-'पीयूषमीयुर्विबुधा बुधा वा नाद्याप्युपायान्त्य- वक्तव्य। (सुद० २/२८) निमेषभावात्। (वीरो० १/२२) ०बात, वार्तालाप। तथा-तृष्णातुराय वाऽमृतसिद्धिं श्रणतीति संसारे। (वीरो० तर्क, अनुमान। ४/४८) वाक्यखण्डनं (नपुं०) तर्क युक्त निराकरण। पादपूर्ति अव्यय-'किं दुष्फला वा सुफलाऽफला वा। वाक्यगत (वि०) विचारगत, वक्तव्य को प्राप्त। (सुद० २/३५) 'वा' अव्यय बहुधा विकल्प के रूप में वाक्यगतिः (स्त्री०) कथन पद्धति। होता है, परन्तु कहीं सम्भावना, कहीं वाक्यपूर्ति, कहीं दो वाक्यगीतः (पुं०) उक्ति युक्त गीत। वाक्यों के जोड़ने रूप एवं कहीं प्रश्नवाचक आदि के रूप वाक्यतत्त्वं (नपुं०) विचार तत्त्व। में प्रयुक्त होता है। 'शस्यवृत्तिमभिवीक्ष्य सदा वा। (जयो० वाक्यतर्कः (पुं०) तर्कसंगत कथन। २७/७) युक्त पंक्ति में 'वा' विशेषता को व्यक्त करता वाक्यदानं (नपुं०) विचार-विनिमय। वाक्यनन्दः (पुं०) रचना शोभा, कथन की सुकुमारता। निशो जिवृत्तौ स्विदुषो गतं वा रुषो विधिं पूर्वदिशोऽविलम्बात्' वाक्यपदं (नपुं०) कथन युक्त पद। (जयो० २४/२३) उक्त पंक्ति में 'वा' का प्रयोग, पर, वाक्यपद्धतिः (स्त्री०) कथनपद्धति। परन्तु, किन्तु के लिए हुआ है। और (जयो० १/६) या वाक्यपदीयं (नपुं०) भर्तृहरि द्वारा रचित एक संस्कृत ग्रंथ। (जयो०वृ० १/५) वा अथवा, तथा, किन्तु, परन्तु, इव, वाक्यपूरणार्थ (वि०) वाक्यपूर्ति के लिए। (जयो० १०/८३) एव आदि के अतिरिक्त अन्यथा कुछ-कुछ, यदि के रूप वाक्यप्रबन्धः (पुं०) वाक्य प्रवाह, वाक्य रचना, रचना शैली। में भी होता है। वाक्यप्रयोगः (पुं०) भाषा उपयोग, प्रबन्ध, रचनाधर्मिता, वा (अक०) वहना, चलना। (जयो० २।८३) वा आपकी कथन की सार्थकता। (वीरो० १९/१४) (सुद० २/१८) वाक्यभेदः (पुं०) उक्ति भेद, कथन में भिन्नता। वा (सक०) प्रहार करना, चोट पहुंचाना, फूंक मारना, बुझाना, | वाक्यमोहिनी (स्त्री०) वाचनिक चतुराई। है। For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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