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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वन्द्रः ९३० वमथुच्छलं वन्द्रः (पुं०) [वन्दु रक्] भक्त, पूजा करने वाला। वपुष्मती (वि०) दिव्यदेह सम्पन्न। (जयो० २/४४) वन्दं (नपुं०) समृद्धि। वपुस् (नपुं०) [वप्+उसि] शरीर, देह। (सुद० ९८) वन्ध्या (स्त्री०) बांझ स्त्री। (सम्य० ११६) ०रस, प्रकृति, सौन्दर्य, छवि। वन्धुरा (वि०) शोभायमान। (जयो० १३/५४) ०तनु (जयो०१/४७, जयो० २/४६) 'न वपुषि अशस्ताः ' वन्ध्यासुतः (पुं०) वन्ध्यापुत्र, बांझ का पुत्र, एक दार्शनिक (सुद० १/२९) दृष्टान्त है, जिसमें पूर्ण अभाव के लिए ऐसा कथन किया वपुस्गुणः (पुं०) रूप की श्रेष्ठता। शरीर सौष्ठव। जाता है। 'खपुष्पैः कुरुते मूढः स वन्ध्यासुतशेखरम्।' वपुस्थ (वि०) शरीरस्थ, देहगत। (भक्ति० ३२) वपुषि तिष्ठतीति (सम्य० ११६) वपुःस्थ शरीरवर्ती। (जयो० १३/९९) वन्य (वि०) [वने भवः यत्] जंगल से सम्बन्ध रखने वाला। वपुःस्थ (वि०) शरीरवर्ती, ०देहजन्य। वन्यः (पुं०) जंगली जानवर। वप्त (पुं०) [वप्+तच] पिताश्री, वाप। वप्ता. पिता। वन्यं (नपुं०) जंगली उपज। (जयो० ३/११६) वन्यगजः (पुं०) जंगली हाथी। कवि। वन्यगत (वि०) अरण्य को प्राप्त हुआ। वप्त (वि०) बोने वाला, पादप लगाने वाला। वन्यजातिः (स्त्री०) अरण्य जनसमूह। वप्रः (वि०) [उप्यते अत्र वप्+रन] दुर्गप्राचीर, प्राकार, परकोटा। वन्यपादय (पुं०) अरण्य वन सम्पदा। (वीरो० २/२४) वन्यप्राणी (स्त्री०) जंगली पशु-पक्षी। दीवार, टीला, भित्ति, तटबन्ध। वन्य भिल्लः (पुं०) वनवासी। नदीतट, पार्श्व, किनारा। वन्यवनस्पतिः (स्त्री०) जंगली वनस्पतियां। ०भवन की मूल नींव। वन्या (स्त्री०) [वन्य+टाप्] वन समूह, झुरमुट। ०खाई, खातिका। जलराशि, बाढ़, जलप्रलय। वप्रक्रिया (स्त्री०) प्रहारक क्रिया। वप् (सक०) बोना, बिखेरना, लगाना, रोपना। (जयो०० | वप्रक्रीड़ा (स्त्री०) तटबन्ध पर भ्रमण की स्थिति। नदी तट २/३१) पर परिभ्रमण। ०मूढ़ना, कांटना। वप्रच्छल (नपुं०) परकोटे के बहाने। (वीरो० १३/८) ०तट वपः (पुं०) बीज बोना, बन्ध का भोग। ___ मूंडना, बुना। वप्रशिखर: (पुं०) परकोटा, खतिका का ऊपरी भाग। (सुद० वपनं (नपुं०) [वप्+ल्युट्] बोना, मूड़ना, कांटना। १/३६) ०बुनना। ०वीर्य, शुक्र, बीज। वप्रि (पुं०) [वप्+किन्] खेत, समुद्र। वपनी (स्त्री०) नाई की दुकान क्षौर शाला। वप्री (स्त्री०) [वप्रि+ङीष] मिट्टी का टीला, पहाडी भाग, __०तन्तु शाला। ऊँचा भाग। वपा (स्त्री०) चर्वी, वसा। वभ्र (सक०) जाना, पहुंचना, प्राप्त होना। छिद्र, रन्ध्र, गत। वम् (सक०) वमन करना, थूकना। (जयो० १४८२) ०बमी, दीमक का टीला। ०बाहर निकालना, उड़ेलना, उत्सर्जन करना। वपाकृत् (पुं०) वसा, मज्जा। अस्वीकृत करना, छोड़ना। वपिल: (पुं०) [वप्+इलच्] प्रजापति, वाप, पिताश्री। वमः (पुं०) [वम्+अप] वमन करना, कै करना, छोडना. वपुनः (पुं०) सुर, देवता। विसर्जन करना। वपुष्मत् (वि०) [वप्+उसि+मतुप्] वमथुः (पुं०) [वम्+असुच्] थूकना, वमन करना, उद्वमन, ०सुन्दर, मनोहर थूत्कर, फूत्कार। शक्तिशाली। (समु० २/१८) वमथुच्छलं (नपुं०) थूत्कार व्याञ, फूत्कार के छल से। For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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