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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लेप्यकृत् ९१६ लोकत्रयहित सांप। १०५) लेप्यकृत् (पुं०) प्रतिमाकार, मूर्तिकार। ०बेलदार। लोक (सक०) अवलोकन करना. देखना, निहारना, प्रत्यक्ष लेप्यमयी (स्त्री०) [लेप्य+मयट्+ङीप्] पुत्तालिका, गुड़िया, ज्ञान करना। लोकयति (जयो० २/१५३) पुतली। जानना, मानना, समझना। लेलिहः (पुं०) [लिह+यङ्, लुक् द्वित्वादि ततः अच] ०सर्प, अभिवादन करना, बधाई देना। लोकः (पुं०) लोग, मनुष्य (समु० २/३१) (जयो० १/५१) लेलिहानः (पुं०) सर्प, सांप। वारा वस्त्राणि लोकानां क्षालयामास या पुरा (सुद० ४/३६) शिव। संसार, जगत्, विश्व। (जयो० १/११) (सम्य० ९७) लेशः (पुं०) अल्प, थोड़ा, अंश, कण। (सुद० १/९) हिस्सा, समुदाय, समिति, समूह। (वीरो० १/२०) अणु। ०क्षेत्र, स्थान, प्रान्त, प्रदेश। (सुद० ११०) बिन्दु। (जयो०) दृष्टि, प्रचलन, परम्परा। (सम्य० ६१) समय माप, गुण। ०दृष्टि, दर्शन। ०लेश अलंकार-जिसमें इष्ट का अनिष्ट के रूप में और लोक जीवन। (सुद० १२०) अनिष्ट का इष्ट के रूप में वर्णन विद्यमान होता है। लोककण्टकः (पुं०) दुष्ट पुरुष, दुर्जन। लेशमात्रं (नपुं०) कणिकामात्र। (जयो०व०० २/१३३)। लोकख्याति (स्त्री०) लौकिक प्रसिद्धि। (जयो० १/८९) लेश्या (स्त्री०) दुर्भावना। (सुद० १०५) राजा जगाद न हि लोककथा (स्त्री०) जन प्रचलित कथा। दर्शनमस्य मे स्यादेतादृशीह परिणामवतोऽस्ति लेश्याः। (सुद० लोककर्तृ (वि०) संसार का रचयिता। सृष्टिकर्ता। लोककृत देखों ऊपर। आकुल भाव। (जयो०१० २७/३२) लोकख्यातः (पुं०) लोक प्रसिद्ध। (जयो०१० १/२५) ०प्रकाश, प्रभा, रोशनी। लोकगाथा (स्त्री०) जन सामान्य की प्रचलित कहानी। लोकगान कषाय की रंजना, कषाय योग। लोगों में गाया जाने वाला गान। जिससे प्राणी कर्म से बंधता है। लोकचक्षुस् (पुं०) सूर्य, दिनकर, रवि। लेश्यागत (वि०) लेश्या को प्राप्त हुआ। लोकचमत्कारक (वि०) जन-जन को आश्चर्य उत्पन्न करने लेश्यागेहं (नपुं०) लेश्या स्थान। वाला। (भक्ति० २१) लेश्यापरिणति (स्त्री०) लेश्या की स्थिति, शुभ स्थिति, | लोकचारित्र (नपुं०) लोक व्यवहार। अशुभस्थिति। लोकजननी (स्त्री०) ०लक्ष्मी, जगत् माता। लेश्याभावः (पुं०) लेश्या परिणाम। लोकजित (पुं०) जिनदेव, जिनप्रभु। (जयो० ९/५३) । लेश्यावान् (वि०) लेश्या वाला। लोकज्येष्ठः (पुं०) जिनदेव, जितेन्द्रिय पुरुष। लेश्यावलम्बनं (नपुं०) लेश्या का आधार। (सम्य० ११५) लोकज्ञ (वि०) संसार को जानने वाला। लेश्याविशुद्धिः (स्त्री०) निराकुल भाव। (जयो० २७/३२) लोकज्ञता (वि०) लोकविदता। (जयो०वृ० १९/४४) लेष्टुः (स्त्री०) मिट्टी/मृत्तिका, ढेला। लोकतत्त्वं (नपुं०) जन-जन का ज्ञान। लेसिकः (पुं०) हस्ति पर आरुढ। लोकतन्त्र (नपुं०) जनतन्त्र। लेहः (पुं०) [लिह+घञ्] चाटना, चखना। लोकतिलकः (पुं०) जन-जन का पूजा स्थल, देवालय। ___ चाट, चटनी, अवलेह। जिवालय (वीरो० १५/३६) लेहनं (नपुं०) चाट, चटनी, चाटना। लोकतुषारः (पुं०) कपूर। लेहिनः (पुं०) सुहागा। लोकत्रयं (नपुं०) तीन लोक. उर्ध्वलोक, मध्यलोक और लेह्य (वि०) चाट, अवलेह। अधोलोक। (वीरो० ६/९) लेां (नपुं०) [लिङ्ग-ठण] किसी चिह्न से सम्बन्धित, अनुमित। | लोकत्रयहित (वि०) तीनों लोकों का हितकारी। (जयो० लैङ्गिकः (पुं०) मूर्तिकार, प्रतिमाकार। १/९७) For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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