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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्थानकम् १२१५ स्थावरः स्थानकम् (नपु०) प्रांगण, क्षेत्र, ठहरने का एकान्त भाग। ० अवस्था, स्थिति। ० उपाश्रय, स्वाध्याय शाला। ० शहर, नगर। जैन संतों के ठहरने एवं उपासना करने के केन्द्र। स्थानक्रिया (स्त्री०) कायोत्सर्ग की स्थिति। स्थानचिन्तकः (पुं०) स्थान/शिविर के लिए चिंतन। स्थानच्युतः (पुं०) पदभ्रष्ट। स्थानपालः (पुं०) आरक्षी, रखवाला, पहरेदार। स्थानभूषणः (पुं०) स्वानुकूलपति। स्थानमेव स्वानुकूलपत्यादिरेव भूषणमलङ्कारो यस्याः सा। (जयो० ३/६५) स्थानभ्रष्ट (वि०) विस्थापित, पद से हटाया गया, पदच्युत। स्थानमाहात्म्य (वि०) किसी स्थान का महत्त्व। स्थानयोगः (पुं०) उपयुक्त पद का योग। स्थानाङ्गम् (नपुं०) द्वादश अंग ग्रन्थों में तृतीय सूत्र। स्थानान्तरः (पुं०) अन्य स्थान। (जयो० ६/२६)० बाहर। (दयो० ६४) स्थानारोहणम् (नपुं०) पद प्रदान, पद स्थापन। (जयो०१० ११/३) स्थानिक (वि०) [स्थान ठक्] किसी स्थान से सम्बंध रखने वाला। स्थानिन् (वि०) [स्थानमस्यास्ति रक्ष्यत्वेन इनि] स्थान वाला स्थैर्य सम्पन्न, स्थायी, अभिहित। ० कायोत्सर्ग जिस स्थान में हो। स्थानं उर्ध्वकायोत्सर्गः तद्विद्यते येषां ते स्थानिनः। (योग०भ०टी० २०२) स्थानीय (वि०) उपयुक्त स्थान वाला, स्थान से सम्बंधित। स्थाने (अव्य०) उपयुक्त स्थान पर, सही ढंग से, सचमुच, समुचित रीति से। स्थापक (वि०) [स्थापयति-स्था+णिच्+ण्वुल्] स्थापित करने वाला, जमाने वाला, खड़ा करने वाला, वश में करने वाला। (जयो०७/२२) स्थापकः (पुं०) निदेशक, रंगमंच प्रबंधक। स्थापत्यः (पुं०) [स्थपति+ष्यञ्] अन्त:पुर का रक्षक। स्थापत्यम् (नपुं०) भवननिर्माण की कला, वास्तु विद्या। स्थापनम् (नपुं०) [स्था+णिच्+ ल्युट्] ० स्थापित करना, रखना, जमाना, लगवाना। (सुद० १/१९) ० ध्यान, धारण। 'सत्रपास्थापनबांछितानि' (वीरो० २/१९) ० निवास, आवास। स्थापन-स्थापनम् (नपुं०) गुणों की स्थापना। स्थापना (स्त्री०) [स्था+णिच्+युच्+टाप्] ० अध्योराप, कल्पना। ० निक्षेप, नामकरण, द्रव्यनामकरण। ० अभिधान, प्रतिष्ठा स्थान। ० व्यवस्था, विनियमन। ० खड़ा करने की क्रिया। ० रंगमंच प्रबन्ध। स्थापय् (अक०) सन्निधान करना, रखना, आरोप करना। (जयो०वृ० २/३१) स्थापित (भू०क०कृ०) [स्था णिच्+क्त] निदेशित, विनियमित, अवस्थिता ० अंकित। (सुद० ८५) ० निविष्ट, निर्धारित। ० दृढ़, स्थिर, उठाया हुआ, खड़ा किया गया। स्थाप्य (वि०) [स्था+णिच्+ण्यत्] रखे जाने योग्य, जमा किये जाने योग्य। ० अंकित करने योग्य, स्थिर करने योग्य। स्थामन् (नपुं०) [स्था+मनिन्] शक्ति, सामर्थ्य, स्थैर्य। स्थायिन् (वि.) [स्था+णिनि युक] स्थित रहने वाला, टिका रहने वाला। ० स्थिर, दृढ़, पक्का , मजबूत, अचल। स्थायुक (वि.) [स्था+उकञ् युक] ठहरने वाला, स्थिर रहने वाला। ० दृढ़, स्थिर, अचल। स्थालम् (नपुं०) [स्खलति तिष्ठति अन्नाद्यत्र आधारे घन] ० थाल, थाली, तस्तरी। ० बर्तन। स्थाली (स्त्री०) [स्थाल+ङीष] थाली, कलश, कारक आदि। (जयोवृ० २४/७२) ० बटलोई। (दयो० ९३) कड़ाही। ० पाक करने का पात्र। स्थालीपुलाकः (पुं०) पकाया हुआ चांवल, पुलाव। स्थालीविलम् (नपुं०) पाक पात्र का भीतरी भाग। स्थावर (वि०) [स्था+वरच्] ० अचल, स्थिर, अचिर, दृढ़, जड़। ० नियमित, स्थापित। स्थावरः (पुं०) पर्वत, पहाड़, पृथ्वी आदि। स्थिर रहने वाले पृथिवी आदि एकेन्द्रिय प्राणी। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति-'पृथिव्यप्तेजो वायुवनस्पतयः स्थावराः' (त०सू० २/१३) जो तिष्ठन्ति-ठहरे हुए हों (त०सू० २/१२) For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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