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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्थपुट १२१४ स्थानम् स्थपुट (वि०) सघन। (जयो० २३/१३) विपन्न, संकटग्रस्त। | स्थविरः (पुं०) वृद्ध, बूढ़ा। स्थल (अक०) स्थिर रहना, दृढ़ होना।। ० भिक्षुक। स्थविरो वृद्धः (जयो० १२/९) स्थविरो जरस! स्थलम् (नपुं०) [स्थल+अच्] भूमि, भूभाग। (सम्य० १०५) वृद्धशरीरः। बालोऽस्तु कश्चित्स्थविरोऽथवा। (सुद० १२१) ० स्थान, जगह (सुद० ७८) खेल, भूखण्ड। तदा प्रत्युत्तरं | स्थविरकल्पः (पुं०) निर्ग्रन्थ, महाव्रती होना। दातुं मृदङ्ग वचसः स्थले (सुद० ७८) स्थविरत्व (वि०) वृद्धापना, बुढ़ापा। (दयो० १००) ० समूह, समुच्चय। (सुद०७२) स्थविरा (स्त्री०) भिक्षुणी। ० गुणस्थान। (सम्य० १३२) 'स्थलं स्यामनर्घतायाः।' ___० बूढी स्त्री। ० प्रस्ताव, प्रसंग, विचारणीय वार्ता। स्थविष्ठ (वि०) [अतिशयेन स्थूल: स्थूल इष्ठन् लस्य लोपः] स्थलकमलम् (नपुं०) पृथ्वी कमल, गुलाब। हस्ट-पुष्ट, सबसे अधिक विस्तृत। स्थलगत (वि०) भू को प्राप्त। स्थवीयस् (वि०) [स्थूल+ईयसुन्] बृहद्, सबसे बड़ा। स्थलचर (वि०) भूचर, चतुष्पादप पशु। वृक-व्याघ्रादयः स्था (अक०) खड़ा होना, ठहरना, स्थित होना। (वीरो०२/३) स्थलचरा। (धव० १३/३९१) भूमि पर चलने वाले जीव तिष्ठति। जन्तु। ० बैठना। (जयो० २।८३) स्थलच्युत (वि०) स्थानापन्न, स्थान से पतित, पदच्युत। ० रहना, बसना, रुकना। (समु० ३/२५) स्थलदेवता (स्त्री०) ग्राम्यदेवी। ० विद्यमान होना, अनुरूप होना। स्थलपद्मम् (नपुं०) गुलाब। (जयो०वृ० ३/७५) ० आश्रित होना, निर्भर होना। स्थलपद्मभर (वि०) भू के पद्मों से परिपूर्ण। ० निवास करना, टिकना। स्थलपद्यानां भराः समूह। (जयो० १३/६२) ० आ पड़ना, सचेत होना। त्यक्त्वा गृहमतः सान्द्रे स्थीयते स्थलपद्मिनी (स्त्री०) भू कमलिनी। महात्मना (वीरो० १०/२०) ० लक्ष्मी। स्थाणु (वि०) [स्था+नु] ढूंठ, खंभा, खूटा। (मुनि० २७) स्थलपयोजनवशं (नपुं०) धूल, रज। (वीरो०६/३४) (भक्ति० १५) स्थलमार्गः (पुं०) सड़क, राजपथा स्थलवर्मन् (नपुं०) राजपथ, भूमार्ग, सड़क, पक्का रास्ता। ० अचल, गतिहीन, स्थिर। स्थलशुद्धि (स्त्री०) भू शुद्धि, भूपरिशोधन। स्थाणुभ्रमः (पुं०) ढूंठ समझना, खंभे का भ्रम होना। स्थला (स्त्री०) [स्थल+टाप्] सूखा भू भाग। स्थाणुवत् (वि०) स्थाणु की तरह (समु० ९/२२) स्थलान्त (वि०) स्थान तक। (सम्य० १३०) स्थाण्डिलः (पुं०) भूखण्ड पर शयन करने वाला भिक्षु। स्थलिनी (वि०) स्थलवाली, भू वाली। (जयो० १३/६१) स्थातुम् (स्था+तुमुन्) ० बैठने के लिए। (जयो० २/८३) स्थली (स्त्री०) [स्थल+ङीप्] सूखा भूखण्ड। ० बसने के लिए (समु० ३/२५) ० नंगी-भू (जयो०वृ० ३/५५) भूमि (जयोवृ० २६/१७) स्थानम् (नपुं०) [स्था+ल्युट्] रहना, खड़ा होना, ठहरना। स्थलीयम् (नपुं०) अवनि, भूमि। (जयो०वृ० २६/१७) ० स्थल, घर, निवास, जगह। स्थलीयमवनिः सैव शक्फली वा सम्भली वा विलासिनी। ० भूमि, भूभाग, संस्थिति, व्रज। (जयो०वृ० २६/१७) ० संस्थान, स्थिति, अवस्था, अवगाहन। स्थलेशय (वि०) [स्थले शेते-शी-अच्] भू भाग पर सोने ० देश, क्षेत्र। ० पद, दर्जा, प्रतिष्ठा। स्थलेशयः (पुं०) जानवर, स्थल या जल से सम्बंधित जानवर। • अवसर, कारण, प्रसंग। स्थविः (पुं०) [स्था+क्वि] जुलाहा, तन्तुवाय। ० उच्चारण स्थान। ० स्वर्ग। ० उचित पदार्थ स्थविर (वि०) [स्था+किरच स्थावादेशः] कठोर, दृढ़, स्थिर, ० प्रांगण, क्षेत्र। पक्का । ० मुख्य भाग। वाला। For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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