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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसप्रबन्धः ८८९ रसिक रसप्रबन्धः (पुं०) रस से परिपूर्ण काव्य। रसात्मक (वि०) रस से परिपूर्ण। रसप्रसन्ना (वि०) श्रृंगार से प्रसन्न। आह्लादकारिण-'रसेन | रसादित (वि०) रस क्रिया युक्त, सरसता से परिपूर्ण। (सुद० शृंगारेण प्रसन्ना' (जयो० १४/४७) १२३) रसफलः (पुं०) नारिकेल तरु। रसाधिका (पुं०) प्रभूतजलवती नदी। रसभङ्गः (पुं०) रसावरोध। रसाधिकारः (पुं०) नवरस विवेचन। (जयो० १/४) (जयो० रसभवं (नपुं०) रुधिर। २०/४७) रसमय (वि०) आनन्द के वेग से युक्त. शृंगार से परिपूर्ण। | रसाभासः (पुं०) रस की प्रतीति। (सुद० ७२) (जयो० ९/६६) रसायनं (नपुं०) रस विज्ञान, रस पद्धति। (जयो०१० २६/५३) रसयोगः (पुं०) रसायन प्रयोग। (सुद० १३३) श्रेष्ठस्य वस्तुनो रसायनस्य योगतः प्रसङ्गतो गरं विषम्' रसराजः (पुं०) श्रृंगार रस। (जयो० ५/७७) संसारे रसराज (जयो०१० २६/५३) 'रसायनं काव्यमिदं श्रयामः' (वीरो० एत्यतिथि सान्नित्यं प्रतिष्ठापन। (वीरो० १/३७) १/२२) 'रसानां शृङ्गारादीनामयनं स्थानम्' (वीरो०वृ० १/२२) ०पारा। रसायनाधीट् (पुं०) चिकित्सक, भिषग, वैद्य। रसलीन (वि०) रसासक्त। (सम्य० १५२) रसायनाधीश्वरः (पुं०) चिकित्सक, वैद्य, वैद्यराज। (जयो० रसवती (स्त्री०) रसोई, भोजनसामग्री। 'रसवत्यपि पायसस्मिता १६/१८) 'रसायनाधीश्वर वैद्य इव भाति। तथाहि-रसस्य वा घृतवद्-व्यञ्जनशालिनी स्वभावात्। (जयो० १२/१२३) जलस्यायनं प्रवर्तनं, पक्षे रसस्य पारदाख्य धातोरयनं रसवती (वि०) शृंगार रूप युक्ता। स्मितपयसा मधुरेण रसवतीय उपयोगकरणं तस्याधीश्वरोऽधिकारी। (वीरो०वृ०४/४) बहुगम्या' (जयो० ३/६०) 'रसवती। शृंगाररसयुक्ता' रसालः (पुं०) आम्र, आम। (दयो०५३) 'सद्रसालसहितोऽमुना (जयो०वृ० ३/६०) पथा राजते' (जयो०वृ० २१/३१) रसवतीकरः (पुं०) सूपकार, रसोइया। (जयो० २०८०) रसाल (वि०) शृंगार रस से अलसाए हुए। (जयो०७० २१/३१) रसवश (वि०) प्रेमयुक्त, प्रेमभाव से परिपूर्ण। (जयो० ५/१८( शृंगार रस से परिपूर्ण। (जयो० ३/३०) सुमना मनुजो यस्यां रसवशिन् (वि०) शृगांराख्य अभिलाषी। ० श्रृंगार रस का महिलासारसालया। (जयो० ३/३०) 'रसालया इच्छुक। (जयो० ६/९९) 'रसः शृङ्गाराख्यो जलात्मकश्च' शृंगाररसपरिपूर्णा' (जयो०वृ० ३/३०) (जयो०७० ६/९९) सरस, रस सहित। (वीरो० १/१२) 'उपद्रुतोऽपयेष तरुरसालं रसविक्रयः (पुं०) मद्यविक्रय, शराब बिक्रीकेन्द्र। फलं श्रणत्यङ्गभृते त्रिकालम्। (वीरो० १/१२) रसशास्त्र (नपुं०) रसायनशास्त्र। ०काव्य रस ग्रन्थ। रसालकोटकः (पुं०) आम के बौर। (दयो० ५३) रससारः (पुं०) अनुराग का सार। (जयो०१४/८९) रसालता (वि०) आम्रफल तुल्यता। (वीरो० ३/२८) आनन्दसार। (जयो० १०/१९) रसालदलं (वि०) आम्रपल्लव। (वीरो० ६/३०) रससिद्ध (वि०) काव्य सम्पन्न, रसवेत्ता। रसाल-रसिक (वि०) आम्र के रस के रसिक। रसालानामम्राणं रससिद्धिः (स्त्री०) रसायन की सिद्धि, रसकला की प्रवीणता। रसिकाः। (जयो०वृ० ६/६९) अधर-स्वादिष्ट, अधर के रसस्थलं (नपुं०) जलस्थान। 'रसस्य स्थलं-जलस्थानम्' (जयो० पान का इच्छुक। (जयो० ६/६९) ११/३०) रसाला (स्त्री०) जिह्वा, रसना, जीभ। रसस्थितिः (स्त्री०) सरसता की परिणति। (वीरो० १) ०रसपरिपूर्ण बाला। (जयो०वृ० १७/६) रसा (स्त्री०) [रस्+अच्+टाप] जिह्वा, जीभा (समु०७/४) रसभरी। इमां रसालां सरसां वाचा' (जयो०वृ० ४/६) (जयो० १/३२) रसिक (वि०) [रसोऽस्त्यस्य ठन्] स्वादिष्ट रस से परिपूर्ण। ०रसना। (जयो० ३/२२) आस्वादनशील। (जयो० ६/६९) निम्नतर, रसातल, निम्नस्थल, नरक। स्वादयुक्त, गुणग्राही। नाटकीय प्रवेश। विवेचका रसातलं (नपुं०) पाताललोक। (समु० २/४) नरक, अधोभाग। सुन्दर, ललित, प्रिय। (जयो० ३/९) (जयो० ५/९०) आनन्द देने वाला, प्रसन्नता अनुभव करने वाला। For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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