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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रविप्रभव्योमयानं ८८८ रसपरित्यागः रविप्रभव्योमयानं (नपुं०) रविप्रभविमान। (समु० ४/३६) रविभासः (पु०) सूर्यप्रभा, सूर्यकान्त। (समु० ५/१०) रविरीतिः (पुं०) अर्ककीर्ति राजा। (जयो० ४/५) रविवारः (पुं०) रविवार, आदित्यवार। रविवासरः (पुं०) देखो ऊपर। सूर्यवार। रविसंक्रान्तिः (स्त्री०) सूर्य की एक राशि। रशना (स्त्री०) रस्सी, डोरी, धागा। ०रास, लगाम। कटिबंध, कंदौरा, कमरबंध करधौनी, करधानी। रश्मिः (स्त्री०) डोर, डोरी, रस्सी। लगाम, रास। किरण, चन्द्रकला, प्रकाश, आभा। ०कान्ति, प्रभा। रश्मिवेशः (पुं०) राजा सूर्यावर्त का पुत्र, यशोधरा रानी का ___ नंदन। (समु० ५/२३) रस् (सक०) भोजन करना, चखना, स्वाद लेना, खाना। 'रसति-भोजनं भुञ्जाने' (वीरो० ४/२४) ०देखना, अवलोकन करना। रसति-पश्यति, प्रेम्णावलोकयति (जयो० १०/११९) रसः (पुं०) सार। फलों का रस। (सुद० ४/३९) ०शृंगार। (जयो० ३/४०) (जयो० १/४) प्रसाद, जल, वारि, नीर। (जयो० ११/३३) ०तरल द्रव्य, तरल पदार्थ, द्रव, बहाव। (जयो०वृ० १ २/७) मदिरा। 'रसं रसित्वा भ्रमतो वसित्वा' (वीरो० ४/२४) रसायन। (वीरो०१/११) गन्धरस। (जयो० १२/७) ०पंच रस। खट्टा, मीठ, कडुवा, चरपरा और कसौला। स्नेह, प्रेम। आनंद, प्रसन्नता, खुशी। ०लावण्य, अभिरुचि, सौंदर्य। ०धातु। (जयो०वृ० १२/७) (जयो०वृ० १२/७) शरीर। (जयोवृ० १२/७) विष। (जयो०वृ० १२/७) काव्य के नव रस। स्वादिष्ट पदार्थ। रसकः (पुं०) चर्मपात्र। (जयो० २/५) कूपले च रसकोऽप्युपेक्षतेः' (जयो० २/१६) रसकूपिका (स्त्री०) रसभरी बावड़ी। 'रसस्य कूपिकेव रसकूपिका' (जयो० ३/४७) रसकेलि (स्त्री०) रसक्रीड़ा, रसोद्वेलन। (जयो० २२/७१) (जयो० २०/४२) रसस्य केलिरापि (जयोवृ० २२/७१) रसकेसरं (नपुं०) कपूर। रसगन्धः (पुं०) लोबान, खुशबूदार गोंद। रसगुल्लुला (स्त्री०) रसगुल्ला। 'अधरलता रसगुल्गुलेति' रसगुल्गुला नाम खाद्यं सरसत्वादेवं कृत्वा स्मितरूपेण' (जयो० ३/६०) रसग्रह (वि०) रस ज्ञाता, प्रसन्नता व्यक्त करने वाला। रसजः (पुं०) राब, शीरा। रस (नपुं०) रुधिर। रसज्ञ (वि०) रस का पारखी, रसायन शास्त्र का ज्ञाता। रसज्ञः (पुं०) भावुक, कवि। रसज्ञा (स्त्री०) जिह्वा, जीभ, रसनेन्द्रिय। (वीरो० ५/२०) (जयो०वृ० २४/८७) ०रसना। रसतारतम्यफालि (स्त्री०) गुड़, मिष्टमधुरगुण वाला गुड। रसतेजस् (नपुं०) रुधिर, रक्त। रसदः (पुं०) वैद्य, चिकित्सक। रसधातु (नपुं०) पारा। रसनं (नपुं०) [रस्+ल्युट्] ०स्वाद, रस। आस्वादन। (वीरो० १/१) कोलाहल करना, टनटन करना। ०क्रन्दन करना, शोर मचाना। गड़गड़ाहट, गरजन। रसना (स्त्री०) काञ्ची, मेखला। रसनया काञ्च्या। (जयो०१०६/४६) ०आस्वादन। (जयो०६/४६) जिह्वा, जीभ, रसनेन्द्रिय। (सुद०८६) (जयो० १/७) रसभरी। (सुद० ८६) एवं रसनया राज्याश्चित्ते रसनयात्तया। (सुद०८६) रसनाकलापच्छल (नपुं०) काञ्चीदाममिष, करधनी के बहाने। (जयो० ११/२३) रसनाग्रवर्तिः (स्त्री०) जीभ के अग्रभागवर्ती. जिह्वाग्रवर्ती। (समु० १/११) रसनालिका (स्त्री०) काव्य रस, विवाह वर्णनात्मक काव्यरस। (जयो० १०/२) रसपरित्यागः (पुं०) विविध रसों का त्याग। For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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