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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रथाक्षः ८८६ रमणीक रथाक्षः (पुं०) रथ की धुरी। ०बलहीन स्थल। रथाग्रणी (पुं०) सारथि, वाहक। (जयो० १३/५) त्रुटि, दोष, कमी। रथाङ्गं (नपुं०) रथचक्र, रथ का पहिया। (जयो० ८/५८, दयो० रन्ध्रवधु (स्त्री०) मूषक, चूहा। १/१९) रन्ध्रवंशः (पुं०) पोला बांस। रथाङ्गिन् (वि०) चक्री युक्त, चक्रवर्ती, चक्रधारी। (जयो० रभ् (सक०) प्रारंभ करना शुरू करना, वर्णन, करना। ९/५६) रथाङ्गिनं बाहुबलिः स एकः जिगाय पश्चात्त (जयो० ८/७४) (जयो० ६/१०२) सांश्रिये कः। (वीरो० १८/३) रभस् (नपुं०) [नभ्+असुन्] ०प्रचण्डता, उत्साह। रथानिवद्ध (वि०) चक्री युक्त। (वीरो० १३/६) ०बल, सामर्थ्य। रथिक (वि०) रथ की सवारी करने वाला। रभस (वि०) [रभ्+असच्] ०वेग, गति, प्रवाह। (जयो० रथिन् (वि०) [रथ-इनि] रथ में सवारी करने वाला। रथेन २६/५०) ___गमनशीला रथगामी। (जयो० १३/१२) प्रबल, गहन, उत्कट, शक्तिशाली, तीक्ष्ण, तीव्र। रथिन् (पुं०) रथ का नायक, रथ का स्वामी। प्रचण्डता, भीषणता, उग्रता। रथारुढ। (जयो० ) साहसिकता। रथ्यः (पुं०) [रथं वहति-यत्] रथाश्व. रथ का घोड़ा। क्रोध, आवेश। रथ्या (स्त्री०) मार्ग, राजपथ। रथ्या रजांसीह किरन-समीर- ०खेद, शोक, खिन्नता। उन्मत्तकल्पो भ्रमतीत्यधीरः। (वीरो० १२/२२) ०हर्ष, आनन्द, खुशी। रद् (सक०) खुरचना, साफ करना। रभसात् (अव्य०) शीघ्रमेव। (जयो० २६/३०) ___०फाड़ना, विदीर्ण करना। रभसोदयी (वि०) अतिशीघ्र। रदः (पुं०) दांत, खुरचना, दन्त। (जयो०५/८८) रम् (अक०) खुश होना, प्रसन्न होना। (वीरो० ८/१७) रदखण्डनं (नपुं०) दांत से काटना। ०खेलना, क्रीड़ा करना। रदचक्र (नपुं०) दंतमण्डल। (जयो०वृ० १३/३६) ०रहना, ठहरना। रदछदः (पुं०) ओष्ठ, होंठ। रम् (सक०) सन्तुष्ट करना, प्रसन्न करना। रदनः (पुं०) [रद्+ल्युट्] दांत, दन्त। रम (वि०) [रम्+अच्] सुहावना, आनन्दप्रद, संतोष जनक। रदनखण्डित (वि०) दन्त खण्डित, दांत से टूटने वाला। रमः (पुं०) प्रेम, प्रीति, स्नेह, कामदेव, पति। __ (जयो० ७/९६) रमण (वि०) सुहावना, प्रिय, मनोहर। रदरोचिषा (स्त्री०) दन्तप्रभा, दांतों की चमक। 'रदानां दन्तानां रमणः (पुं०) कान्त, प्रेमी, पति। (जयो० २/१४८) रोचिषा किरणेन दन्तकान्तिः' (जयो० १७/१२९) ०कामदेव, मदन, स्मर। रदवासस् (पुं०) अधर, ओष्ठ। (जयो० १२/७८, ११/९९) गधा। रदालिः (स्त्री०) दंत पंक्ति। (वीरो० ५/२०) अण्डकोष। रदांशपुष्पाञ्जलिः (स्त्री०) दन्तकिरण का समर्पण। (सुद० । रमणं (नपुं०) क्रीड़ा करना, प्रेमालिंगन। २/१२) रति, मैथुन। रदांशु (नपुं०) दन्तप्रभा। हर्ष, उल्लास। रध (सक०) चोट पहुंचाना, मार डालना, नष्ट करना। ०कूल्हा, पुट्ठा। ०संताप देना, कष्ट देना। रमणा (स्त्री०) [रमण+टाप्] सुंदर स्त्री। रन्तु (स्त्री०) [रम्+तुन्] रास्ता, मार्ग। रमणी (स्त्री०) कामिनी। (जयो० ३/३६) ०नदी। ०कान्ता, प्रिया, तरुणी। (जयोवृ० ६/३५) रन्धनं (नपुं०) [रध्+ल्युट] क्षति पहुंचाना, सन्ताप देना। रमणीक (वि०) सुंदर, मनोहर। 'रमण्या इमं रमणीकमधरं' रन्धं (नपुं०) विवर, छिद्र, छेद, गर्त, गड्ढा , खाई, दरार। (जयो० १७/११८) For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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