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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साम्प्रतः ११८० सारगन्धाः साम्प्रतः (पुं०) नाम, स्थापना आदि का वाच्य-वाचक रूप ०दिन की समाप्ति। प्रसिद्ध शब्द। ० सान्ध्यकाल। साम्प्रतम् (अव्य०) तब, इस समय, तात्कालिक, ठीक तरह सायकः (पुं० [सो ण्वुल] बाण। (सुद०७/१०) से। अधुना (जयो० ४/१२) इदानीम् (जयो० ११/९४) सायकम् (नपुं०) तलवार, अस्त्र। आज। (जयो० २/९३) (मुनि० १९) सायनम् (नपुं०) [सोल्युट्] देशान्तर रेखा। साम्प्रतिक (वि.) [सम्प्रति+ठक] वर्तमान काल सम्बन्धी। ० बिंदु से मापी माने वाली रेखा। ० सही समय, उचित, योग्य। सायन्तन (वि०) [सायम् ट्युल] सान्ध्यकाल सम्बंधी, साम्प्रदायिक (वि०) [सम्प्रदाय ठक्] ० परम्परागत प्राप्त सायंकालीन। (दयो० २०) सिद्धान्त। सायम् (अव्य०) [सो+अमु] सायंकाल के समय। आशासिता ० क्रमागत। सायमुपैति रोषान्। (वीरो० १२/२१) ० सम्प्रदाय/समूह से सम्बंधित। सायंकालः (पुं०) संध्याकाल, दिनात्यय। (वीरो० १/२१) साम्भोगिक (वि०) सम्भोग से युक्त, ० परस्पर उपाधि से (जयो० २४/२७) सहित। सायंविधि (स्त्री०) सान्ध्यवन्दनादिविधि। (जयो० २२/५७) साम्बः (पुं०) [सह अम्बया] शिव। सायपर्यन्त (वि०) दिवान्त पर्यन्त। (जयो०वृ० १५/१४) साम्बन्धिक (वि०) [सम्बंध+ठक्] सम्बन्ध से उत्पन्न। सायमय (वि०) संध्याकाल युक्त। (जयो० ) साम्बन्धिकम (नपुं०) मित्रता, रिश्तेदारी, सम्बंध।। सायंश्रिय (वि०) सन्ध्याकालीन। (जयो० ३/९) साम्बरी (स्त्री०) [सम्बर+अण+ङीप्] जादूगरनी। सायाख्या (स्त्री०) सन्ध्यारूपिणी। (जयो० १५/१३) साम्भवी (स्त्री०) [सम्भव+अण+ङीप्] शक्यता, सम्भावना। सायिन् (पुं०) [साय+इन] अश्वारोही, घुड़सवार। साम्यम् (नपुं०) [सम्ष्य ञ्] (जयो० २७/५१) ० समता, सायुज्यम् (नपुं०) [सयुज+ष्यञ्] समरूपता, प्रगाढ़ मेल। समभाव, सामञ्जस्या साम्यं जना आशु समाचरन्ति। आपसी सम्बंधा (भक्ति० ३६) सार (वि०) [सृ+घञ्, सार+अच् वा] उत्तम (जयो० २२/१) ० मोह एवं क्षोभ रहित आत्मा का परिणाम। (मुनि० ० सर्वोत्तम, उत्कृष्ट, श्रेष्ठ उच्चतम। १३) ० मनोहर, प्रिय। (जयो० १०/५७) ० निर्विकारभाव, जीव का आत्यन्तिक निर्विकारी भाव। ० वास्तविक, यथार्थ, सत्य, सच्चा। ० समानता। (जयो० ५/७९) ० दृढ़, मजबूत। ० तुल्यता, सादृश्य। (सुद० १३२) ० श्रेष्ठ। (जयो० १६/१५) साम्यभावः (पुं०) समताभाव। (भक्ति० ४) ० सिद्ध, पूर्णतः युक्त। साम्यभृत (वि०) समबुद्धियुक्त। (जयो० २४/१४१) सारः (पुं०) देखो नीचे। साम्राज्ञी (स्त्री०) चक्रवर्तिनी। (जयो० ५/९२) सारम् (नपुं०) सत्त्व, सत्। साम्राज्यम् (नपुं०) [सम्राज+ष्यञ्] ० प्रभुत्व, एकाधिपत्य, ० रस, रहस्य, निचोड़, प्रशस्त। (जयो० ५/४८) पूर्णाधिकार। (जयो० ५/७५) ० संक्षिप्तसार, संक्षेप, सारांश। संग्रह्य सारं जगतां तथात्राऽसौ ० सर्वोत्कृष्ट राज्य, सार्वभौमिक राज्य। निर्मितासीद्धिधिना विधात्रा। (जयो० ५/८०) साम्राज्यक्रिया (स्त्री०) सर्वोत्कृष्ट राज्य की क्रिया, प्रभुत्व की ० सारभूत। (सुद० ७९) उपस्थिति। ० गुण। (जयो० १/१०) साम्राज्यपदं (नपुं०) सर्वोत्कृष्ट स्थान। (वीरो० २१/१८) ० मूल्य। ० वस्तु की वास्तविक स्थिति। विजयित्वप्रतिपादक। (जयो० ११/३२) ० सामर्थ्य, शक्ति, बल। साम्राज्यस्तुकः (पुं०) साम्राज्य स्थान। (जयो० ७/११३) सारघम् (नपु०) मधु, शहद। सायः (पुं०) [सो+घञ्] समाप्ति, अन्त, अवसान। | सारगन्धाः (पुं०) चन्दन दारु, चन्दन की लकड़ी। For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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