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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम्विसर्जनम् ११६६ सरट - पाटा सम्विसर्जनम् (नपुं०) सम्प्रेषण। (सम्य० ८९) सम्विभागीकृत (वि०) बराबर विभाग करने वाला, (जयो० २/११०) सम्विधाकार (वि०) सुव्यवस्थादायक। (जयो० २/१००) सम्विभूषणम् (नपुं०) उचित अलंकरण। (जयो० १४/८०) सम्विशः (पुं०) प्रवेश-विट् पुंसि वैश्ये मुनजे प्रवेशे सु पुनः स्त्रियाम् इति वि। (जयो०१० २५/५१) सम्विद (वि०) जानने वाला। (सम्य०८९) सम्विघ्नवाधा (स्त्री०) सभी तरह की विघ्न बाधाएं। (सुद० २/२३) सम्विघातिन् (नपुं०) नुकसान करने वाला, हानिकारक। (समु० १/३४) सम्विधानम् (नपुं०) सभी नियम। (सुद० ११५) सम्विधि (स्त्री०) सुविधालक्षण, सहावनी। (जयो० १२/३८) सम्विभा (स्त्री०) समीचीन प्रभा। (जयो० २६/४८) सम्विभाज्य (वि०) विभागयोग्य। (जयो० १२/११७) सम्विभृर् (सक०) धारण करना। 'प्रपा पानः किल सम्विभर्तिः' (वीरो०१२/२७) सम्विराग (वि०) विराग युक्त। (सुद० १०१) विराग सहित। सम्विलोडनम् (नपुं०) निर्मथन (जयो०२३/८५) सम्विलोपिन् (वि०) भागने वाला। (समु० ६/३२) सम्वेगः (पुं०) सम्यग्दर्शन का एक भेद, सम्यक्त्व भाव। (सम्य० ७५) धर्म के प्रति तत्पर होना। (सम्य० पृ०७६) सम्व्यवहारः (पुं०) खरीद। (जयो० वृ० १३/८७) सम्विशिष्ट (वि.) अति विशिष्ट, विशेष रूप से। दीनस्वरसम्विशिष्टाम्। (समु० ३/३७) सम्विसित (वि०) माना गया, समझा गया। (जयो० १४/७७) सम्विह (अक०) घूमना, परिभ्रमण करना। (समु० २/२२) सम्वेदकर (वि०) विश्वज्ञायक। (वीरो० १९/३७) सम्वेशिन् (वि०) सुंदराकार धारिन्। (जयो०वृ० २३/२८) सम्वेगधर (वि०) सुष्ठुवेगयुक्त। (जयो० २३/३) संवेगं धर्मानुरागं धरतीति। सम्वेशभावः (पं०) विवेकशील। (सुद० १३१) सम्स्मृ (सक०) स्मरण करना। (सुद० २/२३) सम्राज् (पुं०)[सम्यक् राजते-सम्+राज+क्विप्] सर्वोपरिप्रभु, विश्वराट्। संहननम् (नपुं०) अस्थि बनावट। (मुनि० ३२) संहिता (स्त्री०) स्मृतिशास्त्र। (जयो० वृ० ३/१२) संहितार्थ (वि०) पवित्रार्थ। (जयो० ९/९०) हितामार्ग युक्त। (जयो० २/४) संहति (स्त्री०) समूह। (सुद० १२३) सहतलिप्स (वि०) मिलनेच्छुक। (जयो० १६/५७) संहारकारक (वि०) बरबाद कारक, नष्ट कारक। (समु० १/२३) (वीरो० ३/१३) संहारकर्ता (वि०) नष्ट करने वाला। सय् (सक०) जाना, पहुंचना। सयूक्ष्यः (पुं०) [सयूथ+यत्] एक ही वर्ग का, एक जाति का। सयोनिः (वि०) [समाना योनिर्यस्य] सहोदर, समान गर्भ से उत्पन्न। सर (वि०) [सृ+अच्] गतिशील, जाने वाला। ०दस्तावर, रेचक। सरः (पुं०) बाण। गति, जाना। ०लड़ी, हार। सरम् (नपुं०) सरोवर, तालाब, झील, तटाक। (जयो० ५/२२) (सुद० ४/२५) (जयो० १२/१४०) सरकः (पुं०) [सृ+वुन्] पंक्ति। मदिरा। (जयो० १६/२७, ११/७६) मद्य। ०प्याला, कटोरा। सरकम् (नपुं०) गति, जाना, तालाब, सरोवर। सरधा (स्त्री०) मधुमक्खी, मक्षिका। (जयो०वृ० २/१३०) सरङ्गः (नपुं०) [ सृ+अङ्गच] चतुष्पाद, चौपाया। ०पक्षी। सरजस् (स्त्री०) रजस्वला स्त्री। सरट् (पुं०) [सृ+अटि:] पवन, वायु। मेघ, बादल। छिपकली। ०मधुमक्खी । For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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