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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रतनारीचः ८८४ रत्नत्रयसंसूचक रतनारीचः (पुं०) कामदेव, मदन। ०श्वान, कुत्ता। रतबन्धः (पुं०) मैथुन, संभोग। रतहिंडकः (पुं०) बलात्कारी, कामुक, विलासी। रता (स्त्री०) रतिक्रीड़ा, कामक्रीड़ा। अनुरक्ति। रताङ्गी (स्त्री०) कोमलाङ्गी। लतावत्सुकोमलशरीरा। (जयो० ११/९४) रतिः (स्त्री०) [रम्+क्तिन्] ०आनंद, हर्ष, खुशी, संतोष। मैथुन, संभोग, सहवास, रतिक्रीड़ा, सुरत। प्रेम, स्नेह। रति-कामदेव स्त्री, रतिदेवी। (सुद०१/४१) कुचौ स्वकीयो विवृतो तयाऽत: रतेरिवाक्रीडधरो स्म भातः।। (सुद० १००) 'अनङ्गस्य स्त्री रति' (जयो० ३/८८) शर्मपात्री रतिः। (जयो०७० ३/८७) रतिकर (वि०) प्रीतिकर, राग सम्पादक। (जयो०वृ० ३/१२) रतिका (स्त्री०) लतिका कामलता। रतिकेतनं (नपुं०) रतिगृह। (मुनि० २, जयो० २२/४६) कामकेलि स्थल, सुरत-रति मंडल। रति कौतुक (वि०) नाम की उत्सुकता। रतिकौतुकः (पुं०) रति और कामदेव। (सुद० २/२६) रतिगृहं (नपुं०) क्रीड़ागृह, रतिक्रीड़ा भवन। रतितस्करः (पुं०) व्यभिचारी पुरुष, कामासक्त। रतितुलित (वि०) रतितुल्य रूप। (जयो० ६/१६) रतिदूती (स्त्री०) प्रेम संदेशिनी। रतिनाथः (पुं०) महादेव। ____०कामदेव। (जयो० ५/२४) रतिपतिः (पुं०) कामदेव। (जयो०वृ० १/७८) (जयो०वृ० ३/२१) स्मर (जयो०वृ० ३/४९) 'ईदृशे युवगणेऽथ विदग्ध का क्षति रतिपतावपि दग्धे। (जयो० ६/२५) रतिप्रतिमा (स्त्री०) काममूर्ति। (जयो० ६/७३) ०रतिबिम्ब। रतिप्रभः (पुं०) रतिप्रभ नामक सर्प, नागराज। (जयो०वृ० २/१५८) रतिप्रियः (पुं०) कामदेव। रतिरमणः (पुं०) कामदेव। रतिरसप्रसरः (पुं०) रतिक्रीड़ा समूह। (जयो० १८/२५) रतिराड् (पुं०) कामदेव, स्मर। (जयो० २/१५७) 'रतिराट् चापाल्लालितगात्रः' (जयो० २/१५७) रतिरासः (पुं०) सुरतक्रीड़ा। (जयो० १८/१०) रतिलपट (वि०) कामासक्त, कामी, विनाशी। रतिवरः (पुं०) रतिवर नामक कबूतर। रतिवरः कपोतः। (जयो० २३/४५) रतिषेणा (स्त्री०) रतिषेणा नामक कपोति, कबतरी। (जयो० २३/४५) रतीन्द्रः (पुं०) कामदेव। (जयो० ६/५०) रतीन्द्रवरः (पुं०) रतिवर। ०कामदेव, मदन। रतीशः (पुं०) कामदेव, स्मर। (जयो० १/६१) (जयो० १६/४७) रतीशकेतुः (स्त्री०) कामदेव की पताका। (सुद० १०१) रतीशमतिः (स्त्री०) कामदेव की बुद्धि। 'रतीशस्य कामदेवस्य ____ मतिरिव' (जयो० ६/७३) रतीशयज्ञः (पुं०) कामयज्ञ। (जयो०२३/६) रतीशशासनप्रवर्तक (वि०) स्मरादेशकर। (जयो०वृ० १६/४७) रतीश्वरः (पुं०) कामदेव, स्मर। (जयो० १६/५) राजाधि राजस्य रतीश्वरस्य रतिर्यथाप्रीतिकरीह तस्य। (समु० ६/११) रत्नं (नपुं०) [रमतेऽत्र, रम्+न तान्तादेश:] मणि, मुक्ता, आभूषण। मूल्यवान् पदार्थ, श्रेष्ठतम वस्तु। जिनोक्ततत्त्वाध्ययने प्रयत्नं कुर्याद्यदिष्टप्रविधायि रत्नम्। (सम्य० ७२) ०अत्यधिक प्रिय। भोग उत्तमतमो भुवि दारास्तेष रत्नमियमेव ससारा। (जयो० ५/१६) रत्नकंदलः (पुं०) मूंगा। रत्नखचित (वि०) रत्नजटित। (जयो० १५/८१) रत्नगर्भः (पुं०) रत्नाकर, समुद्र। रत्नगुलिका (स्त्री०) रत्नपोटली, रत्नपिटक। (समु० ३/४३) रत्नजूटः (पुं०) रत्नसमूह। (वीरो० २/१८) रत्नत्रयं (नपुं०) तीन रत्न। (भक्ति० २९) दर्शन, ज्ञान और चारित्र। (सम्य० ३०) ०खनिज। (हीरा पन्ना) जलज। (सीप-मोती) प्राणिज। (गजमुक्ता ) (सुद०पृ० ४३) रत्नत्रयमार्गी (वि०) मोक्षमार्गी, मोक्षमार्ग के सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र का अनुसरण करने वाला। रत्नत्रयसंसूचक (वि०) मोक्षमार्ग के तीन गुणों का सूचक। (जयो० ६/१३०) यत्पादयोः पतित्वाऽन्यभूपकरकुड्मलं व्रजति बाले। रत्नत्रयसंसूचकचित्रिकरुचिमवनितल भाले।। (जयो० ६/३०) For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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