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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समुन्मत्ता ११५८ सम्पथ समुन्मत्ता (स्त्री०) पगली। (सुद० ८४) समुन्मान्त (स्त्री०) रोगिणी स्त्री। (सुद० ८४) समुन्मूलनम् (नपुं०) [सम्+उद्+मूल्+ल्युट्] जड़ से उखाड़ना, पूर्ण विनाश। समुप् (अक०) उपस्थित होना। (जयो०४/२४) समुप् (सक०) माना, समझना। 'हा हन्त किन्तु समुपैमि कले प्रतापम्' (वीरो० २२/२५) समुपगम् (अक०) [सम्+उप्+गम्] समीप आना, निकट पहुंचना। समुपगमः (पुं०) [सम्+उप+गम्+अप्] सम्पर्क, पहुंच। समुपजोषम् (अव्य०) [सम्+उप्+जुष्+अम्] प्रसन्नतापूर्वक, इच्छानुसार। समुपभोगः (पुं०) [सम्+अप्+भुज+घञ्] संभोग, मैथुन। समुपदेशनम् (नपुं०) [सम्+उप्+विश्ल्युट्] आवास, निवास, भवन, गृह, घर। बिठाना, ठहराना। समुपभा (अक०) [सम्+उप्+भा] प्रतीत होना। (जयो०७० १/९२) समुपादन (वि०) जूता युक्त, पादत्राण युक्त। (जयो० १७/११) उपानयुक्त। समुपानहः (वि०) जूता, पादत्राण। (जयो०वृ० १३/११) समुपस्थ (वि०) उपस्थित होकर। विधृताङ्गुलि उत्थितः क्षणं समुपस्थाय पतन् सुलक्षण:। (सुद० पृ० ५२) समुपस्थापनम् (नपुं०) [सम्+उप्+स्था-अङ्ल्यु ट्] निकटता, समीपता। ०पहुंच, सम्पर्क। समुपस्थित (वि०) उपस्थित हुआ। (दयो० १०८) समुपह (सक०) उठाना। (जयो० १२/११९) समुपागम (वि०) समीप आना। (जयो० १५/९८) समुपार्जनम् (नपुं०) [सम्+उप्+अ+ल्युट्] अभिग्रहण, प्राप्त करना। समुपाल (वि०) उपभोग करना। (सुद० ४/९९) समुपेत (भू०क०कृ०) [सम्+उप्+इ+क्त] ०सहित, युक्त। ___०एकत्रित, इकट्ठे हुए। समुपेत्य (सक०) आकर। (सुद० ३/१९) समुपोढ (भू०क०कृ०) [सम्+उप्+व+क्त] उठा हुआ, ऊपर गया हुआ। समुल्लसन् (वि०) सुहावना। समुल्लसन्मानसवत्युदारा। | (सुद०१/८) अभिमानी, अहंकारी। समुल्लासः (पुं०) [सम्+उन्+लस्+घञ्] अधिक उत्साह। ०अधिक कान्ति, प्रभा, तेज। ०हर्ष, आनन्द। समुल्लासित (वि०) प्रसन्नतापूर्वक, हर्ष युक्त, आनन्दित। (वीरो० १८/४०) समुल्वणम् (नपुं०) वृद्धि गते सति उद्वेलभाव। (जयो० ____ १६/२१) उद्वेलण। (जयो० ३/९३) (जयो० ७१/३) समुल्लेखनीय (वि०) उल्लेख करने योग्य। (जयो०२३/८६) समुवाच (वि०) कहा गया। (समु० २/२६) समुष्णीकृत् (वि०) प्रासुक किया गया। (वीरो० १९/२७) समूढ (भू०क०कृ०) [सम्+ऊह+क्त] संचित, संगृहीत निकट लाया गया। शान्त, वशीकृत। ०वक्र, झुका हुआ। समूरः (पुं०) [संगतौ ऊरु यस्य] हिरण। समूल (वि.) [सह मूलेन] जड़ सहित। मुद्गर सहित। (जयो० ८) समूहः (वि०) [सम् ऊह्+घञ्] ०योग (जयो० १/२४) समुच्चय, संग्रह, संघात। समूहगः (पुं०) समुच्चय। (जयो० १३/२) (सुद० २/१३) समूहनम् (नपुं०) [समूह+ल्युट्] संग्रह, समुच्चय, समुदाय। समूहनी (स्त्री०) बुहारी, झाडू। समूहमाणी (स्त्री०) समूह खान। (समु० १/५) समूह्यः (पुं०) [सम्+ऊह्+ण्यत्] यज्ञाग्नि। समृत्तिक (वि०) मृत्तिक सहित, मिट्टी युक्त। (जयो० १९/५) समृद्ध (भू०क०कृ०) [सम्+ऋध+क्त] ऐश्वर्यशाली। (जयो० १/७१) ०सम्पन्न, पूर्ण वैभवयुक्त। सम्पत्कर (वि०) सम्पादन कर। (जयो०वृ० ११/३१) सम्पत्निधिः (स्त्री०) प्राप्त सम्पत्ति। (सुद० ४/४७) सम्पत्तिः (स्त्री०) [सम्+पद्+क्तिन्] ०धन, वैभव, सम्पदा। (सुद० १११) समृद्धि, ऐश्वर्य, धन सम्पदा। सौभाग्य, आनन्द। ०सफलता। सम्पथ (वि०) सम्पन्था दस्यां सा-सन्मार्ग युक्त। (जयो०७० २/१२) For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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