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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समनस्कः ११४६ समयः - समनस्कः (पुं०) संज्ञी जीव। मनसहित जीव। (जयो० १३/१२) सम्बद्ध (दयो० १/१९) आबद्ध। समनीकिनीश्वरः (पुं०) सेनानायक, सेनापति। (जयो० २१/१) ०अनुगत सार्धम्। (जयो०वृ० १/५५) समानभावः (पु०) बोध करना। (जयो० २।५९) ०सहित, युक्त, परिपूर्ण, पूरित, भरा हुआ। (जयो०३/७५) समनुकूलित (वि०) अनुकूल करते हुए। (जयो० ४/४४) समन्वयालङ्कार (पुं०) एक अलंकार विशेष। (वीरो० २/३८) समनुयापिनी (वि०) अकुरणशीला। (भक्ति० ) नासौ नरो यो न विभाति भोगी भोगोऽपि नासौ न वृषप्रयोगी समनोज्ञ (वि०) ज्ञानादि सहित, रमणीयता युक्त, अत्यंत प्रिय। वृषो न सोऽसख्यासमर्थितः स्यात् सख्यं च तन्नात्र कदापि सम्भोग सहित। न स्यात्।। (वीरो० २/३८) समन्त (वि०) [सम्यक्+अन्तो यत्र] पूर्ण, व्याप्त, पूरा, समस्त। समपूज् (अक०) पूजा करना, अर्चना करना। (सुद० ३/२) समन्तः (पुं०) व्यापक, सीमा, मर्यादा। 'समन्तम्, समन्ततः समभावत (वि०) सुशोभित होते हुए। (वीरो० ८/१०) समन्तात्' (जयो०वृ० ३/७४) (जयो० ११/९०) (सुद० समभिप्लुत (भू०क०कृ०) [सम्+अभि+प्लु+क्त] ०बाढ़ग्रस्त। १/२९) क्रिया विशेषण के रूप में प्रयुक्त होते हैं। ____०ग्रहण युक्ता (दयो० ३१) समभिव्याहारः (पुं०) [सम्+अभि+वि+आ+ह+घञ्] ०साहचर्य, समन्तभडः (पुं०) आचार्य समन्तभद्र। (वीरो० १/२४) समन्वित, साथ। समन्तभद्र (वि०) समन्ताद्भद्र-कुशलं तस्मै समस्तु भवतु (वीरो० ०सामीप्य। १/२४) * समभिसरणं (नपुं०) [सम्+अभि+स+ल्युट्] ०पहुंचना, जाना। समरस: (पुं०) पवित्र रस। (जयो० २५/६६) ०प्राप्त होना। समन्तभद्र (वि०) सभी तरह से योग्य। (जयो०वृ०४/९०) ०खोज करना, कामना करना। समन्तभद्रः (पुं०) शान्तिवर्मा। (जयो०७० ३/६४) आचार्य समभिहारः (पुं०) [सम्+अभि+ह+ज] साथ साथ ले जाना। समन्तभद्र। (समु०१/११) आवृत्ति। शान्तिवर्मा नाम समन्तभद्रः। देवागम स्तोत्र रचनाकार। ० अतिरिक्त। (सुद०८२) समभू (वि०) समदर्शिका। (जयो०७० २४/१३०) हो गए। समन्तमार्गः (पुं०) चतुष्कपथ, चौराहा। (जयो०वृ० ४/४) (१२३) विचारना (सुद० १०८) (जयो०वृ० ३/५४) समभूत (वि०) सुन्दरतम। (जयो०५/२०) समभूत् (वि०) हुआ। (जयो०वृ० २६/१) प्रसन्न रहने वाला। (सुद० २/१) । समभूतरक्षणम् (नपुं०) समस्त जीवों का संरक्षण। समानां | समभूमिलनम् (नपुं०) निर्दोष सम्मिलन। (वीरो० २२/४) सर्वेषां भूतानां रक्षणं यत्र (जयो०वृ० २६/१) सदृक् | समभ्यर्चनम् (नपुं०) [सम्+अभि+अ+ ल्युट्] पूजा करना, सर्वमान्येषु च समं त्रिषु इति विश्वलोचने (जयो०पृ० ११७४) अर्चना करना। समन्तरी (स्त्री०) समादरणीयस्थान। (जयो० २४/३) ०समादर करना। समन्तरीय (वि०) सुप्रशस्त अधोवस्त्र। (जयो० १७/७४) समभ्याहारः (पु०) [सम्+अभि+आ+ह+घञ्] साहचर्य, साथ। समन्यु (वि०) [सह मन्युना] शोकाकुल, रोषपूर्ण, रुष्ट। । समय (अक०) विलीन होना। समयतो प्राप्नोत् (जयो० ९/४४) समन्वयः (पुं०) [सम्+अनु+इ+अच्] पारस्परिक सम्बन्ध। समय (वि०) समान रूप से स्थित होने वाला। (सुद०१/१५) (जयो०१० ११/७६) समयः (पुं०) [सम्+इ+अच्] काल, ०समकक्षभाव, सम्मेलन (जयो० ६/७६) अनुक्रम युक्त। ०अवसर। (सम्य० ८८) ०संयोग। उपयुक्त समय। (सुद० ७१) . समन्वयानन्दः (पुं०) सब लोगों को होने वाला आनन्द। सिद्धान्त, विचार। (समु० १/५) ०आचार आचरण। (जयो० १२/११०) समपादि (वि.) बनाई गई, निर्मित की गई। (दयो०१६) सहज, स्वाभाविक। (जयो० १/१९) समन्वित (भू०क०कृ०) [सम्+अभि+प्लु+क्त] समुदाय सहित । ०आत्म सार। For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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