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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रचना ८८२ रञ्जनव्रती रचना (स्त्री०) [रच्+युच स्त्रियां टाप्] सृजन, निर्माण, संरचना, ०हृदय। कृति। ०आत्मा। सन्निवेश। (जयो०वृ० १/११) रजः समूहः (पुं०) धूलि का ढेर। (वीरो० १६/५) सम्पन्नता, पूर्ति, निष्पत्ति। रजस्पुत्रः (पुं०) लोलुपता, लालच। उत्पन्न करना, बनाना। रजस्बंध: (पुं०) रजोधर्म बन्द होना। रचनापाटवः (पुं०) सृजन कला, संरचना विशेषता। | रजस्वल (वि०) [रजस्+वलच] मैला, ०धूल से भरा हुआ, (जयो० १११) धूल धूसरित। रचनानुरक्त (वि०) मनोनुरक्त, प्रसन्न। (जयो०वृ० १६/६४) रजस्वला (स्त्री०) रेणुबहुला, धूलि की प्रमुखता। (जयो० रचित (वि०) सन्निवेशित, (सम्य० १५६) सृजित। १३/९२) (जयो० ११/१०) ०अभिनिर्मित, संरचित। ०मासिकधर्मवती, मासिकधर्मयुक्ता, रजोधर्मयुक्ता। रजकः (पुं०) धोबी। (जयो० ८/१०) (जयो०१० २१/९) (दयो० २/६) रजका (स्त्री०) धोबन, धोबिन। (सुद० ४/२८) रजांसि (वि०) धूलिकण युक्त, पराग परिपूर्ण। (जयो० १/५३) रजकी (स्त्री०) ०धोबिन, ०धोबी की भार्या। रजोगुणकः (पुं०) रजधोना। धोबी। (जयो० २५/५२) रजत (वि०) उज्ज्वल, सफेद रंग का, धवलता युक्त। दुर्वण। (जयो० ३/७) रज्जुः (स्त्री०) रस्सी, डोरी, धागा, सूत। रजतं (नपुं०) चांदी। रज्जुगुणं (नपुं०) ०सूत्र, रस्सी, धागा। (जयो० १२/१३) (सम्य०७३) ०माला। रज्जूवत् (वि०) रस्सी की तरह। यथावलं बुद्धिरुदेतिजन्तोरज्जू रुधिर। वदस्योद्वलितुं समन्तोः। (सम्य०७३) ०हाथी दांत। रंज् (अक०) चमकना, रंगना, लाल होना। ०तारा समूह। ०मुग्ध होना, प्रेमासक्त होना। रजताचलः (पुं०) रजतपर्वत। (वीरो० ११/२५) प्रसन्न होना, संतुष्ट होना। रजनि (स्त्री०) रात्रि, रात। (सुद०९९) चमकाने वाली, पीली। सुशोभित होना। (जयो० ३/१०९) (दयो० १/१७) रञ्जकः (पुं०) [रंजयति-रंज्+णिच-ण्वुल] चित्रकार, रंगरेज। रजनी (स्त्री०) निशा, शशिता, तमस्विनी। उत्तेजक, उद्दीपक, रोचक। (जयोवृ० १२/१२८) रजनीकरः (पुं०) चन्द्र, शशि। रञ्जक (वि०) रंज करने वाला, शोक करने वाला। रजनीचरः (पुं०) पिशाच, बेताल। रञ्जकं (वि०) लाल चन्दन। रजनीजलं (नपुं०) ओस, बेताल। सिन्दूर। रजनीजनं (नपुं०) ओस, हिमकण, धुंध। रञ्जनः (पुं०) रंगरेज। (समु० ९/१८) रजनीपतिः (पुं०) चन्द्र, शशि। रञ्जनं (नपुं०) [रज्यतेऽनेन रञ्ज करणे ल्युट्] रंग करना, रजनीप्रबन्धः (पुं०) निशासत्त्व। (जयो० १८/३) हल्का करना, लेप करना, रगना। रजनीमुखं (नपुं०) सन्ध्या, प्रदोष। (जयो० १५/८) ०वर्ण, रंग। रजनीशः (पुं०) चन्द्र। हिमांशु, निशाशु। ०प्रसन्न, खुश, संतुष्ट, तृप्त। रजनीशकला (स्त्री०) चन्द्रकिरण। (जयो० ५/६७) रञ्जनकृत् (वि०) रंजन करने वाला, मनोरंजन करने वाला। रजस् (पुं०) [रञ्ज+असुन्] धूली, रज, रेणु, गर्द। (समु० जनकसुतादिकवृत्तवचस्तु जनरञ्जनकृत्केवलमस्तु। (सुद० ३/१६) (सुद० १२५) ८८) ०अन्धकार, तमस्। रञ्जनव्रती (वि०) प्रसन्न करने वाला, खुश करने वाला। न गुण विशेष। क्षलमेत्यपि समरी यावज्जन रञ्जनव्रती समरीन। रजसानु (पुं०) मेघ, बादल। (जयो०६/९३) स० For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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